वर्धा यूनिवर्सिटी के दलित-बहुजन रिसर्च छात्रों ने विश्वविद्यालय प्रशासन पर लगाया शोषण का आरोप, कहा VC के इशारे पर हुआ हमारा निलंबन
वर्धा यूनिवर्सिटी के शोध छात्र राजेश कुमार आरोप लगाते हैं कि हमारी पीएचडी, विश्वविद्यालय अधिनियम के विरुद्ध, बिना हमारा पक्ष सुने 27 जनवरी 2024 से पहले रद्द कर दी गई है|
महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा के दलित बहुजनों शोधार्थियों ने विश्वविद्यालय प्रशासन पर शोषण का आरोप लगाते हुए कहा है कि अधिनियम विरुद्ध उनका निलंबन/निष्कासन किया गया और वह लोग पिछले 8 माह से न्याय की आस में दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं।
मीडिया को दिये गये अपने पत्र में वर्धा यूनिवर्सिटी के शोध छात्र राजेश कुमार यादव आरोप लगाते हैं कि हमारी पीएचडी, विश्वविद्यालय अधिनियम के विरुद्ध, बिना हमारा पक्ष सुने विगत 08 माह (27 जनवरी 2024 से) पहले रद्द कर दी गई है। हम इसे पुनः प्राप्त करने के लिए संघर्षरत हैं और उच्च शिक्षा से संबंधित सभी संस्थानों में शिकायतें दर्ज कर चुके हैं, परंतु संबंधित संस्थानों ने हमारे निष्कासन / निलंबन को लेकर अब तक कोई कार्यवाही नहीं की है।
वह आगे कहते हैं, ‘हमारे निष्कासन / निलंबन का मुख्य कारण विश्वविद्यालय में लंबे समय से हो रही अनियमितताओं के विरुद्ध हमारा संवैधानिक विरोध है। इसी विरोध के कारण पूर्व कुलपति रजनीश शुक्ल का कार्यकाल पूरा किए बिना इस्तीफा देना पड़ा था। उन पर 50 से अधिक शिक्षक नियुक्तियों में धांधली, महिला शिक्षिका के यौन शोषण और इस प्रकरण से जुड़े वायरल स्क्रीनशॉट्स के आरोप थे। शुक्ल के इस्तीफे के बाद, विश्वविद्यालय अधिनियम के विरुद्ध जाकर केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने आईआईएम नागपुर के निदेशक भीमराव मेत्री को अतिरिक्त कार्यभार सौंपा। मेत्री ने एक निलंबित शिक्षक धर्वेश कठेरिया को बिना जांच और निर्णय के कुलसचिव / कुलानुशासक पद पर नियुक्त कर दिया और विश्वविद्यालय का संपूर्ण कार्यभार उनके ऊपर छोड़ दिया। कठेरिया द्वारा पद का दुरुपयोग करते हुए वित्तीय अनियमितता और अधिनियम के विरुद्ध छात्रों / शिक्षकों पर कार्यवाही के आरोप लगे, जिसके कारण कुलपति ने कठेरिया को कुलसचिव पद से हटाया। इन आरोपों की जांच के लिए अभी तक कोई समिति नहीं बनाई गई है, और न ही दोषी अधिकारियों के खिलाफ कोई कार्यवाही की गई है।’
पत्र में आगे लिखा है, ‘इसी प्रकार, केंद्र द्वारा कुलपति मेत्री की नियुक्ति के खिलाफ वरिष्ठ प्रोफेसर लेला करुण्यकारा ने उच्च न्यायालय, नागपुर में याचिका दायर की थी। न्यायालय ने सुनवाई के बाद कुलपति की नियुक्ति को अवैध करार दिया था। परंतु मंत्रालय के उच्च अधिकारियों को यह नागवार गुजरा कि विश्वविद्यालय अधिनियम के तहत एक दलित शिक्षक, जो कुलपति पद के दावेदार थे, अवैध नियुक्ति के खिलाफ उच्च न्यायालय तक पहुंच गये। इसके चलते, उसे एक साजिश के तहत निलंबित कर दिया गया और अन्य वरिष्ठ प्रोफेसर केके सिंह को कार्यकारी कुलपति पद पर नियुक्त कर दिया गया।’
शोधार्थी आरोप लगाते हैं, ‘वर्तमान कुलपति केके सिंह व कुलसचिव आनंद पाटिल द्वारा 5 छात्रों के निलंबन व निष्कासन को वापस नहीं लिया गया है। आर्थिक रूप से सक्षम दो छात्र, निरंजन कुमार और विवेक मिश्र, ने उच्च न्यायालय से निष्कासन / निलंबन के आदेश पर रोक लगवा ली। प्रकरण की सुनवाई के दौरान माननीय न्यायाधीश ने कहा कि छात्रों का निलंबन / निष्कासन प्राकृतिक न्याय के खिलाफ माना है। वर्तमान कुलपति के के सिंह और कुलसचिव आनंद पाटिल को पिछले 08 महीनों में इस प्रकरण की जानकारी ऑफिसियल ईमेल, फोन और पर्सनल व्हाट्सएप के माध्यम से कई बार देने के बावजूद कोई कार्यवाही न करना एक संगठित षड्यंत्र को दर्शाता है। प्रथमदृष्टया, अप्रैल 2019 से अगस्त 2023 के बिच शिक्षक नियुक्तियों में धांधली को इस पूरी स्थिति का प्रमुख कारण माना जा सकता है।’
शोधार्थियों ने मीडिया को जारी पत्र में अनुरोध किया है कि हमारी पीएचडी निरस्त करने के इस अवैध प्रकरण को अपने मीडिया संस्थान में प्रमुखता से प्रकाशित कर इसे सार्वजनिक मंच पर लाने में हमारी सहायता करें। अपने पक्ष में शोधार्थियों द्वारा तमाम दस्तावेज भी भेजे गये हैं।
सौजन्य:जनज्वार
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