यह चुनाव हमारे लोकतंत्र के लिए निर्णायक घड़ी है. विकल्प बहुत कठिन है- आजादी और निरंकुश शासन के बीच से किसी एक को चुनना है. हमारी स्थिति इससे अधिक निराशाजनक नहीं हो सकती कि चारों तरफ धार्मिक कट्टरपंथी, जबरन वसूली […]
यह चुनाव हमारे लोकतंत्र के लिए निर्णायक घड़ी है. विकल्प बहुत कठिन है- आजादी और निरंकुश शासन के बीच से किसी एक को चुनना है. हमारी स्थिति इससे अधिक निराशाजनक नहीं हो सकती कि चारों तरफ धार्मिक कट्टरपंथी, जबरन वसूली […]
संजय सिंह की रिहाई न सिर्फ AAP के लिए एक जीत है, बल्कि यह अन्य विपक्षी दलों के साथ पार्टी के गठबंधन के लिए भी रणनीतिक महत्व रखती है|भारतीय राजनीति में जारी उथल-पुथल के बीच, राज्यसभा सांसद और आम आदमी […]
रक्षा मंत्रालय के मार्गदर्शन में चलने वाले सैनिक स्कूल, भारत के सशस्त्र बलों में कैडेट भेजते हैं। हालाँकि, नई पहल भविष्य के कैडेटों को प्रशिक्षित करने के लिए वैचारिक रूप से झुकाव वाले संगठनों पर निर्भर करती है| नई दिल्ली: […]
चुनावी बॉन्ड के ज़रिये राजनीतिक दलों को चंदा देने वालों में सड़क, खनन और इंफ्रास्ट्रक्चर संबंधी बड़ी कंपनियों का शामिल होना दिखाता है कि भले चंदे की राशि राजनीतिक दलों को मिल रही है, लेकिन इनकी क़ीमत आम आदिवासी और […]
हम ऐसे युग में रहते हैं जब पूरा देश विधायी और कार्यकारी शाखाओं पर नियंत्रण रखने के लिए न्यायपालिका की ओर देखता है. क्या हमें राजनीतिक दलों को न्यायाधीशों को अपने पक्ष में करने की अनुमति देनी चाहिए? क्या आपको […]
स्कूली शिक्षा में और अधिक बजट के आवंटन की स्थिति को देखें, तो केंद्रीय विद्यालय, नवोदय विद्यालय, पीएम पोषण में मामूली वृद्धि की गई है। ग्रामीण क्षेत्रों में कमज़ोर सामाजिक-आर्थिक तबके से आने वाले विद्यार्थियों के लिए शुरू की गई […]
चुनावों की निष्पक्षता और पवित्रता पर जितने गंभीर प्रश्न अब उठ रहे हैं, वैसा आजाद भारत के इतिहास में कभी नहीं हुआ। चर्चा सोशल मीडिया से फैलते हुए अब राजनेताओं और विशेषज्ञों तक पहुंच चुकी है। सिर्फ हाल के महीनों […]
भारत को आजादी मिलने से कुछ पहले ही जब लन्दन से प्रकाशित होने वाले अंग्रेजी के एक प्रतिष्ठित अखबार में पं. जवाहर लाल नेहरू ने एक लेख लिख कर यह कहा कि भारत कभी भी ‘गरीब मुल्क’ नहीं रहा तो […]
मणिपुर के मैतेई समुदाय के एक नेता के मांग पर जनजातीय कार्य मंत्रालय, भारत सरकार ने 26 दिसंबर, 2023 को मणिपुर सरकार को पत्र लिखकर ‘चिन-कुकी’ को अनुसूचित जनजाति (एसटी) की सूची से हटाने के लिए प्रस्ताव मांगा है। यह […]
ज्योति निशा समकालीन भारत में दलित-बहुजन पहचान को आकार देने वाले विरोधाभासों पर एक नारीवादी और व्यक्तिगत अंतर्दृष्टि प्रदान करती है| दयानंद द्वारा लिखित यह डॉक्यूमेंट्री एक दलित-बहुजन महिला फिल्म निर्माता के नजरिए से अंबेडकर के दृष्टिकोण की गहन व्यक्तिगत […]
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