महिला के खिलाफ FIR होने पर ग्रामीणों ने किया दलितों का बहिष्कार, पुलिस ने सुलझाई समस्या
गुजरात के बोटाद जिले के एक गांव में दलितों को मंदिर में प्रवेश से रोकने के आरोप में उच्च जाति की महिला की गिरफ्तारी हुई थी। जिसके बाद अनुसूचित जाति समुदाय के निवासियों का सामाजिक बहिष्कार हुआ। लेकिन अब पुलिस द्वारा शांति कायम करने के बाद इस मुद्दे को सुलझा लिया गया है। एक अधिकारी ने सोमवार को यह जानकारी दी।
यह घटना 18 अगस्त की है जब अनुसूचित जाति समुदाय की चार महिलाएं लिंबाडिया गांव के एक मंदिर में पूजा-अर्चना करने गई थीं। लेकिन पाटीदार समुदाय की एक महिला ने उन्हें यह कहते हुए रोक दिया था कि दलितों को मंदिर में अंदर जाने की अनुमति नहीं है।
प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) के मुताबिक, “उस महिला (उच्च जाति की) ने कथित तौर पर महिलाओं पर जातिवादी टिप्पणियां कीं और उन्हें मंदिर में प्रवेश करने से मना किया।”
ढासा थाने के निरीक्षक बीएम पंडित ने बताया कि उसी दिन अनुसूचित जाति एव अनुसूचित जनजाति अधिनियम (एससी-एसटी एक्ट) के तहत मामला दर्ज किया गया था और आरोपी महिला को 19 अगस्त को गिरफ्तार कर लिया गया था। रिमांड पूरी होने के बाद उसे जेल भेज दिया गया था।
स्थानीय नेता अमरू मकवाना ने दावा किया कि इस कार्रवाई से नाखुश लिंबाडिया के ग्रामीणों ने दुकानदारों और अन्य लोगों को दलित निवासियों का बहिष्कार करने के लिए एक फरमान जारी किया। मकवाना ने पत्रकारों से कहा, ग्रामीणों ने हमें कोई काम भी नहीं दिया जिसके कारण 25 दलित परिवारों को कहीं और जा सकते थे।
थाना निरीक्षक पंडित ने कहा कि मामला बढ़ने से पहले ही पुलिस गांव पहुंच गई और सभी समुदाय के नेताओं के साथ एक बैठक की व्यवस्था की, जिसके बाद दलितों ने मंदिर में प्रवेश किया और दुकानों से किराने का सामान भी खरीदा।
पुलिस अधिकारी ने कहा, “बैठक के दौरान सभी ने गतिरोध खत्म करने और शांति से रहने पर सहमति जताई। बहिष्कार के मुद्दे को सौहार्दपूर्ण तरीके से सुलझा लिया गया है।”
दलित नेता प्रवीण राठौड़ ने कहा कि पुलिस और मीडिया के हस्तक्षेप के बाद उनके समुदाय के सदस्यों ने गांव में दुकानों से किराने का सामान खरीदा। उन्होंने कहा, “एक नआई ने एक दलित व्यक्ति के बाल भी काटे। हम मंदिर गए थे। समस्या का समाधान हो गया है।”
सौजन्य : Amarujala
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