राज्यपाल के पद से त्यागपत्र देकर चुनाव लड़ रहीं बेबी रानी ने कहा- पद नहीं, वंचित समाज की सेवा के लिए सक्रिय राजनीति में लौटी हूं
उत्तराखंड के राज्यपाल पद से त्यागपत्र देकर सक्रिय राजनीति में वापसी करने वाली बेबी रानी मौर्य का कहना है, मैं न तो पद के लिए सक्रिय राजनीति में लौटी हूं और न ही इसके पीछे मेरा कोई सियासी एजेंडा है। मैं सिर्फ समाज के बीच रहकर दलित, शोषित व वंचित समाज की आवाज बनना चाहती हूं। आगरा ग्रामीण विधानसभा क्षेत्र से चुनाव मैदान में उतरीं बेबी रानी मानती हैं कि समाज की सेवा करनी है, तो उनके बीच रहे बिना यह संभव नहीं है। पेश है बेबी रानी मौर्य से सुधीर कुमार सिंह से बातचीत के प्रमुख अंश…
उत्तराखंड के राज्यपाल पद से त्यागपत्र देकर सक्रिय राजनीति में वापसी करने वाली बेबी रानी मौर्य का कहना है, मैं न तो पद के लिए सक्रिय राजनीति में लौटी हूं और न ही इसके पीछे मेरा कोई सियासी एजेंडा है। मैं सिर्फ समाज के बीच रहकर दलित, शोषित व वंचित समाज की आवाज बनना चाहती हूं। आगरा ग्रामीण विधानसभा क्षेत्र से चुनाव मैदान में उतरीं बेबी रानी मानती हैं कि समाज की सेवा करनी है, तो उनके बीच रहे बिना यह संभव नहीं है। पेश है बेबी रानी मौर्य से सुधीर कुमार सिंह से बातचीत के प्रमुख अंश…
माना जा रहा है कि प्रदेश में सरकार बनी तो आप उप मुख्यमंत्री की दावेदार होंगी?
इस प्रकार की चर्चा बेबुनियाद है। मैं किसी पद की लालच में सक्रिय राजनीति में नहीं लौटी हूं। बल्कि समाज के बीच में रहकर दलित, शोषित और वंचित लोगों के उत्थान में भूमिका निभाना चाहती हूं। वैसे भी भाजपा में इस तरह के पदों पर नियुक्ति का काम पार्टी का शीर्ष नेतृत्व करता है। चुनाव बाद हमें किस तरह की भूमिका निभानी है, यह पार्टी तय करेगी।
आप राज्यपाल की भूमिका से संतुष्ट थीं या मौजूदा भूमिका रास आ रही है?
दरअसल, राज्यपाल एक संवैधानिक पद है। वहां रहकर समाज के लिए बहुत कुछ करने का मौका नहीं मिल रहा था। इसलिए मैंने फिर से सक्रिय राजनीति का रास्ता चुना है। मैं भाजपा की कार्यकर्ता के तौर पर काम करना चाहती हूं। पार्टी ने कहा कि राज्यपाल बन जाओ तो मैं राज्यपाल बन गई और अब पार्टी ने कहा कि सक्रिय राजनीति में आकर समाज की सेवा करो, तो मैं आज चुनाव लड़ रही हूं।
कार्यकाल पूरा होने के दो साल पहले ही आपको त्यागपत्र दिलाने की वजह क्या है?
समय से पहले इस्तीफा देने के पीछे सिर्फ समाज की सेवा ही है। सक्रिय राजनीति में रहकर ही यह संभव था। इसलिए पार्टी ने मेरी मंशा को देखते हुए चुनाव लड़ाया है। मैंने मेयर के तौर पर भी बेहतर काम किया था। विधायक बनकर समाज की समस्याओं को नजदीक से देखने का मौका मिलेगा। किसी का टिकट क्यों कटा, यह तो मैं नहीं जानती।
मायावती व चंद्रशेखर के मुकाबले आप दलित चेहरे के तौर पर कैसे स्थान बना पाएंगी?
सिर्फ दलित होने से कोई बड़ा चेहरा नहीं बन जाता है। इसके लिए जमीन पर उतरकर दलित व वंचित समाज की समस्याओं को नजदीक से जानना होता है। उनके बीच जाकर उनकी आवाज बनना होगा। जिनका नाम आप बड़े चेहरे के तौर पर ले रहे हैं, इन लोगों ने अपने समाज के लिए कुछ नहीं किया है। केवल उनकी भावनाओं से खेलकर अपनी सियासत चमकाई है। जहां तक मेरा सवाल है, तो मेयर के तौर पर भी मैंने दलित और पिछड़े समाज के लिए बहुत काम किए हैं। आगे भी मेरी कोशिश होगी कि समाज के बीच में रहकर उनके लिए काम करूं। उनकी समस्याओं का समाधान कराऊं।
दलित महिलाओं की राजनीति में भागीदारी बढ़ाने के लिए क्या प्रयास करेंगी?
पहले तो मेरी कोशिश यह होगी दलित व वंचित समाज की जो महिलाएं योग्य व कर्मठ हैं और समाज सेवा करना चाहती हैं, वह भाजपा के प्लेटफॉर्म पर आकर अपने समाज के उत्थान के लिए काम करें। इसके अलावा गांव-देहात में रहने वाली ऐसी महिलाओं को साथ जोड़ा जाएगा, जो उचित प्लेटफॉर्म न मिलने की वजह से घर बैठी हैं। दलित समाज की महिलाएं यदि समाजसेवा के क्षेत्र में आना चाहेंगी तो उनकी मदद के लिए मैं हमेशा खड़ी मिलूंगी।
सौजन्य : Amar ujala
नोट : यह समाचार मूलरूप से amarujala.com में प्रकाशित हुआ है. मानवाधिकारों के प्रति संवेदनशीलता व जागरूकता के उद्देश्य से प्रकाशित किया गया है !