‘द ग्रेट चमार’ के बोर्ड से योगी को ललकारने तक:उन 16 दिनों की कहानी, जिसने चंद्रशेखर को दलितों का मसीहा बना दिया
लखनऊ के एक बंद कमरे में 34 साल के एक नौजवान ने अखिलेश यादव से कहा, ‘चुनाव लडूंगा तो योगी आदित्यनाथ के खिलाफ। नहीं तो नहीं लड़ूंगा।’ अखिलेश नहीं माने। नौजवान ने कहा, ‘फिर गठबंधन भी भूल जाइए।’
तभी BJP ने एक ऐलान किया कि योगी गोरखपुर सदर से चुनाव लड़ेंगे। अगले दिन उस नौजवान ने भी ऐलान किया, ‘आ रहा हूं योगीजी। आपके ही घर में आपसे लड़ूंगा।’ उसमें ये हिम्मत एक-दो दिन में नहीं आई है।
कहानी शुरू होती है एएचपी इंटर कॉलेज, छुटमलपुर से
लखनऊ से 693 किलोमीटर दूर, जिला- सहरानपुर। जिले में दीवारों पर 2 फोटोज नजर आती हैं। पहली महाराणा प्रताप की। यानी वो किसी ब्राह्मण-ठाकुर या सवर्ण जाति का घर होगा।
दूसरी भीमराव अंबेडकर की। मतलब है, वह बस्ती अनुसूचित जाति यानी दलितों की है। जिले के छुटमलपुर में एंग्लो हिंदुस्तान पब्लिक इंटर कॉलेज है। दोनों बिरादरी के बच्चे पढ़ने आते हैं। एक दिन एक दलित लड़का कॉलेज जल्दी पहुंच गया।
आधे घंटे बाद वह धरती पर लहूलुहान पड़ा था। उसे सवर्ण जाति के बच्चों ने बहुत मारा था। कह रहे थे, ‘इसकी हिम्मत देखो। कब से आया है और बाबू साहब बनकर बैठा है। बेंच नहीं साफ कर सकता है।’
8 दिन बीते। फिर लड़का जमींदोज था। लात-घूंसे बरस रहे थे। इस बार गलती ये थी कि एग्जाम में वह सवर्ण बच्चों से ज्यादा नंबर ले आया था। नाक से खून टपकाते हुए जब लड़का पहुंचा तो घरवाले खून का घूंट पीकर रह गए।
यहां से सीन में आता है वकील चंद्रशेखर
बच्चे की पिटाई से खिसियाए लोगों ने पहली बार हिम्मत दिखाई। वे एक वकील के पास गए। न्याय चाहते थे। तय हुआ कि सवर्णों को सबक सिखाया जाएगा। वकील को उस कॉलेज के बारे में पता था। जानता था, कोर्ट-कचहरी जाने से कुछ नहीं होने वाला। उसने पहले से ही एक संगठन बना लिया था, भीम आर्मी।
भीम आर्मी के चीफ रावण का जन्म हुआ
वकील चंद्रशेखर का नाम बदल गया। स्टाइल बदल गई। दिमाग बदल गया। इलाके में एक नई कोर्ट आ गई थी। दलितों को न्याय दिलाने के लिए लड़ती। उसके चीफ का नाम वकील चंद्रशेखर नहीं, बल्कि रावण कहा जाने लगा।
रावण ने पहला केस उसी कॉलेज वाले मामले का निपटारा किया। वह सैकड़ों दलित लड़के लेकर एएचपी कॉलेज पहुंच गया। सवर्णों ने पहले चढ़ाई करनी चाही, लेकिन देखकर समझ गए कि ये लोग आर-पार करने आए हैं। आज नहीं थमेंगे। सवर्णों के बच्चों ने कदम पीछे खींच लिया। भीम आर्मी ने पहला केस जीत लिया।
सवर्णों से जीते तो गांव के सामने बोर्ड लगाया, द ग्रेट चमार
भीम आर्मी ढूंढ-ढूंढकर दलितों की मदद करने लगी। उनकी लड़कियों की शादी कराने लगी। स्कूल बनवाए। तभी चंद्रशेखर ने धड़कौली गांव के बाहर एक बोर्ड लगाया, ‘द ग्रेट चमार।’
विरोध शुरू हुआ। सवर्णों का ही नहीं, अपनों का भी। तब उसने कहा, ‘गाड़ियों और घरों पर द ग्रेट राजपूत भी तो लिखा रहता है। हमें भी अपनी जाति पर गर्व है।’ सभी की समझ में आ गया। समुद्र में एक तूफान आ गया है।
2 साल भीम आर्मी लड़ाई लड़ती रही, फिर अंबेडकर जयंती आई…
साल बीत रहे थे। 2015 से 2017 आ गया। भीम आर्मी सोशल मीडिया से धीरे-धीरे लोगों को जोड़ रही थी। तब तक इस आर्मी को सिर्फ सहारनपुर के लोग जानते थे। सही कहें तो ठीक से सहारनपुर भी नहीं। सिर्फ पांच-सात गांव के लोग। लेकिन अंबेडकर जयंती आई।
जिला सहारनपुर, गांव शब्बीरपुर, तारीख, 14 अप्रैल 2017
अंबेडकर जयंती थी। भीम आर्मी अपने मंदिर में अंबेडकर की मूर्ति लगाना चाहती थी। मूर्ति आ गई। लगनी शुरू हो गई। तभी कुछ राजपूत पुलिस लेकर आ गए। लाठियां-डंडे निकले। खूब मारपीट हुई। पुलिस ने मूर्ति लगाने से मना कर दिया। राजपूतों की आंखों में खून संवार हो गया। आखिर इतनी हिम्मत कैसे हुई। दलितों के सिर पर खून सवार हो गया। आखिर अब नहीं बोलेंगे तो कब बोलेंगे?
20 दिन बाद…असल कहानी यहां से शुरू होती है
वह दिन जिसका एक-एक मिनट सहारनपुर भूल नहीं पाता
5 मई 2017, सुबह 9 बजे थे। गांव में दो चीजें एक साथ हो रहीं थीं। पहली शिमलाना गांव में महाराणा प्रताप की जयंती मनाई जा रही थी। इसमें पूरे उत्तर भारत से राजपूतों को बुलाया गया था। करीब 2500 लोग प्रोग्राम में पहुंचे थे।
दूसरी तरफ शब्बीरपुर गांव से 25-30 राजपूत प्रोग्राम में जाने के लिए निकले। दलितों की बस्ती से निकलते वक्त भीड़ ने ‘महाराणा प्रताप जिंदाबाद और अंबेडकर मुर्दाबाद’ के नारे लगाने शुरू कर दिए।
SC समुदाय के लोगों ने कहा, ‘ये गलत है। मत करो नहीं तो ठीक नहीं होगा’। राजपूत नहीं माने। नारे का शोर थोड़ा और बढ़ा दिया। तभी मोटा पत्थर दलितों की बस्ती से उड़ता हुआ आया। एक राजपूत का सिर फट गया।
कलछी, डकची, गड़ासा, जिसे जो मिला बरसाने लगा। जवाब में ईंट-पत्थर, लाठी जो भी सड़क पर दिखा, वह चलने लगा। राजपूतों में दो लोगों के पास कट्टा और देसी पिस्टल थी। फायरिंग शुरू कर दी। दलित बस्ती के लोग भागे, लेकिन छिपे नहीं। छतों पर चढ़ गए। घर से कलछी, डकची, गड़ासा, जिसे जो मिला, उससे हमला करने लगे।
एक तरफ सिर्फ 25 लोग, दूसरी ओर पूरा गांव। राजपूतों में से एक इतनी बुरी तरह से घायल हुए कि मौत हो गई। गांव शांत हो गया। राजपूत लौट गए। डर तो था, लेकिन सबको लगा मामला खत्म हो गया है।
तभी फूलन देवी को मारने वाला भाषण दे रहा था…
गांव के दूसरे छोर पर महाराणा प्रताप जयंती के प्रोग्राम में शेर राणा सिंह भाषण दे रहा था। ये वही शेर राणा सिंह है, जिसने फूलन देवी की हत्या की थी। किसी ने उसके कान में कहा कि दलितों ने 3-4 राजपूतों को गोली मार दी।
उसने गरज के कहा, ‘इन्हें फिर से औकात दिखाने का समय आ गया है।’ गांव में तूफान आ गया। 1000 लोगों की गुस्साई भीड़ दलित बस्ती की ओर दौड़ी। घरों में घुसी। बच्चे, बूढ़े और महिलाओं को घसीटा। चुन-चुन कर जाटवों के घरों में आग लगा दी।
9 मई 2017, भीम आर्मी का एक फरमान आया। गांधी पार्क में जुटो। करीब 1000 लोग इकठ्ठा हो गए। पुलिस की गाड़ियां पहुंची। उन्हीं पर गुस्सा फूट गया। पुलिस चौकी फूंक दी, एक बस को जला दिया, 20 गाड़ियों में तोड़फोड़ की।
पुलिस को चकमा देकर चंद्रशेखर अंडरकवर हो गए
पुलिस का वही हथकंडा, 300 लोगों पर मुकदमा लिखा। 37 लोगों को पकड़कर जेल में डाला, लेकिन चंद्रशेखर उनमें नहीं था। पुलिस ने कहा दंगा हुआ है। इसका मास्टरमाइंड चंद्रशेखर है। चंद्रशेखर तो निकल चुका था।
पुलिस ने उसके नाम पर हाई अलर्ट जारी किया। पूरे 75 जिलों की पुलिस ढूंढने में लग गई। उस पर रासुका यानी राष्ट्रीय सुरक्षा कानून लगा दिया गया, लेकिन पुलिस उसे पकड़ नहीं पाई। चंद्रशेखर के गांव के लोगों को पुलिस ने अपना असली रूप दिखाना शुरू किया तब चंद्रशेखर का एक ऑडियो आया…
इस ऑडियो के बाद पूरे देश ने चंद्रशेखर को जाना, तब उन्हें लोग रावण कहते थे
‘9 मई की घटना के बाद कुछ लोग कह रहे हैं कि मैं डर गया हूं, कुछ लोग कह रहे मैं छुप गया हूं, कुछ लोग कह रहे मैं भाग गया हूं। सच ये है कि मैं बस इस देश की व्यवस्था को देखना चाहता था कि किस तरह ये अपनी कौम की हक की लड़ाई लड़ने वाले एक व्यक्ति को नक्सली बना देते हैं।’ ये ऑडियो वायरल हो गया, लेकिन वह शख्स किसी को नहीं मिला।
12 दिन बाद दिल्ली में गजब नजारा, 5000 चंद्रशेखर जंतर-मंतर पर आ गए
दिल्ली में 21 मई 2017 की सुबह हो रही थी। करीब 10 बजे थे। जंतर-मंतर पर अचानक नीली टोपी पहने हजारों की भीड़ दिखने लगी। करीब 5000 लोग थे। कई साल से ऐसा नजारा वहां नहीं दिखा था। युवा चंद्रशेखर का मुखौटा लगाए थे। मुखौटों के बीच उस भीड़ में चंद्रशेखर भी था।
स्टेज पर चढ़कर चंद्रशेखर ने कहा ‘सदियों से हमारी जाति पर अत्याचार होते आ रहे हैं। सहारनपुर में भी हमारे घर जलाए गए। इसके बावजूद पुलिस वालों ने सवर्णों की बजाय हमारे ही लोगों को जेल में डाल दिया। पुलिस को उन्हें जल्द छोड़ना होगा, नहीं तो इससे बड़ा आंदोलन होगा। पुलिस हमारे 37 भाइयों को रिहा कर देगी तो मैं खुद आत्मसमर्पण कर दूंगा’। यहां से चंद्रशेखर दलितों के हीरो बन गए…
कहानी यही खत्म नहीं होती, कुछ लफ्ज और हैं
8 जून 2017 को पुलिस ने चंद्रशेखर को गिरफ्तार कर लिया। उसको 1 नवंबर 2018 तक जेल में रहना था। पर 2019 चुनाव भी आने वाले थे। मोदी सरकार ने एससी-एसटी एक्ट लाकर मास्टर स्ट्रोक लगाया था। बीजेपी दलित वोटरों को रिझाने में लगी थी। रावण की गिरफ्तारी दूध में नमक की तरह स्वाद बिगाड़ रही थी। इसलिए 13 सितम्बर 2018 की रात 2:30 बजे उनकी रिहाई हो गई।
चुनाव आए तो चंद्रशेखर अस्पताल में भर्ती थे। प्रियंका गांधी भी उनसे मिलने गईं, क्योंकि कांग्रेस को भी वेस्ट यूपी के वोटों की फिक्र थी। अब वे नेता बन गए थे। उनका मेलमिलाप नेताओं से होने लगा। फिर 15 मार्च 2020 को उन्होंने आजाद समाज पार्टी बना ली। अब खुद योगी के खिलाफ चुनाव लड़ रहे हैं अपनी पार्टी के कैंडिडेट भी उतार रहे हैं।
सौजन्य : Dainik bhaskar
नोट : यह समाचार मूलरूप से bhaskar.com में प्रकाशित हुआ है. मानवाधिकारों के प्रति संवेदनशीलता व जागरूकता के उद्देश्य से प्रकाशित किया गया है !