नशे के खिलाफ धरने पर हूं:बेटा हेरोइन लेता है, अधमरा पड़ा है, पुलिस धरना हटाने आती है; ड्रग्स पर रोक कोई नहीं लगाता
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मेरा नाम परमिंदर कौर है। बठिंडा की धोबियाना बस्ती की रहने वाली हूं। नशे के खिलाफ पिछले एक साल से धरना दे रही हूं। मेरी कॉलोनी के हर घर का कम से कम एक बच्चा चिट्टा यानी हेरोइन का नशा कर बर्बाद हो चुका है।
मेरे घर की हालत भी कुछ ऐसी ही है। जवान बेटा दिन-रात नशा करता है। वह पांच बेटियों का बाप है। उसे इस बात की भी चिंता नहीं कि बच्चियों पर क्या असर होगा। घर के हालात को देखते हुए मैंने एक कड़ा फैसला लिया है। उसकी चार बेटियाें को अपने साथ रखा हैं और बहू-बेटे को उनकी सबसे छोटी बच्ची के साथ अलग कर दिया है।
मैंने कुछ गलत नहीं किया है। बिल्कुल सही फैसला है मेरा। मैं नहीं चाहती कि उस नशेड़ी की परछाई भी मेरी मासूम पोतियों पर पड़े। आज मुझे दुख इस बात का है कि पंजाब पुलिस मेरा धरना खत्म करने आती है, चिट्टे का कारोबार खत्म कराने कोई नहीं आता। न पुलिस, न ही नेता।
परमिंदर कौर हेरोइन के नशे के खिलाफ धरना-प्रदर्शन कर रही हैं। इस वजह से उन पर राजनीति करने का आरोप भी लगा। अब बस्ती की महिलाएं इन्हें सपोर्ट कर रही हैं। परमिंदर कौर हेरोइन के नशे के खिलाफ धरना-प्रदर्शन कर रही हैं। इस वजह से उन पर राजनीति करने का आरोप भी लगा। अब बस्ती की महिलाएं इन्हें सपोर्ट कर रही हैं। मेरा ब्याह 1982 में हुआ। पति मजदूरी करते थे। मैं इसी झुग्गी में दुल्हन बनकर आई थी। पति किसी भी तरह का नशा नहीं करते थे। तब आसपास भी नशे का माहौल नहीं था। दो-चार लोग ही थे, जो अफीम या बुक्की (अफीम के पौधे से निकला बुरादा) लेते थे।
बाद में वह भी थोड़ा-बहुत नशा करने लगे थे। इसके बावजूद ऐसा नहीं था कि नशा कर वह दिनभर पड़े रहते थे। उस तरफ (घर के दूसरे हिस्से की ओर इशारा करते हुए) मेरा बेटा लेटा होगा, उसे देखकर आप समझ पाएंगे कि अब उसकी कितनी बुरी हालत है।
15 साल की उम्र से मेरा बेटा दिन-रात घर के बाहर घूमता था। हमारी बस्ती झुग्गी वाली है। यहां चौराहे, गली, मोड़ और नुक्कड़ पर हमेशा से नशा बेचने वाले घूमते रहते थे। यह देखकर मुझे हमेशा डर लगा रहता था कि कहीं एक दिन वह भी नशा न करने लगे। मैं उसे रोजाना समझाती थी। इसी बीच मेरे पति की मौत हो गई। घर की जिम्मेदारी बेटे पर आ गई। कमाई का कोई ठोस जरिया भी नहीं था। वह मजदूरी करने लगा। दिनभर शहर में मजदूरी करके ही वह कमा-खा रहा था। मैंने उसकी शादी कर दी।
पहले उस पर बहुत निगरानी रखती थी, लेकिन जवान बेटे के पीछे कब तक नजर रखी जा सकती है? शादी के बाद एक दिन नशे में घर आया तो मैंने बहुत मारा। उस पर कोई असर नहीं हुआ। वह धीरे-धीरे ड्रग्स लेने लगा। तब मैं डर गई। एक रात बहुत रोई और बहू को उसे समझाने को कहा। बहू ने जब मेरे कहने पर उसे रोका तो उसकी पिटाई कर दी। धीरे-धीरे मैंने उससे बाेलचाल ही कम कर दी। पहले वह बुक्की का नशा करता था। इस बात का संतोष था कि कमा तो रहा है।
फिर बेटे की चाह में इसने पांच बेटियां पैदा कर लीं। मैं अनपढ़ हूं फिर भी दोनों को समझाया। किसी ने नहीं सुनी। जब तीसरी बेटी हुई तो उसके बाद उसने कमाना भी छोड़ दिया। यहीं से मुझे लग गया कि यह बुक्की के अलावा भी कुछ नशा कर रहा है।
परमिंदर कौर ने तय किया है कि जब तक जिंदा रहेंगी, नशे से गांव के लड़कों को बचाने का प्रयास करेंगी। उन्हें सरकार पर भरोसा नहीं है। कोरोना के बाद की बात है। बहू पांचवी बार प्रेग्नेंट थी और घर में खाने को कुछ नहीं था। मैंने जाकर कहा कि कुछ कमा कर लाओ, घर में एक दिन का भी राशन नहीं है। मेरा बेटा बिस्तर से हिला भी नहीं। पास जाकर देखा तो बेहोश पड़ा था। मैं भागकर अस्पताल ले गई तो पता चला कि रात को इसने पहली बार चिट्टे का नशा किया है।
वह दिन और आज का दिन, एक रुपया भी नहीं कमा कर लाया। बीच में मैंने लड़-झगड़कर उसे सेंटर (रिहैब सेंटर) भेजा। छह महीना तक ठीक था, लेकिन फिर शुरू कर दिया। अरे, जब चार कदम पर नशा मिलेगा तो नशा करने वाला कर ही लेगा। मेरे जवान बेटे को चिट्टे ने निगल लिया (दोनों हाथों से आंख पोंछते हुए)।
2022 की बात है। कॉलोनी में 15 दिन में दस से ज्यादा जवान बच्चे मर गए। वह सब मेरे बच्चे नहीं थे। मैंने उन बच्चों को जन्म नहीं दिया है, लेकिन किसी के तो थे। उस दिन मुझे लगा कि कुछ करना चाहिए। परमिंदर कौर के पड़ोस में रहने वाला यह जवान लड़का चिट्टे की लत की वजह से हाल ही में मर गया। अब उसके घर में सिर्फ बूढ़े पिता ही बचे हैं। मैं क्या कर सकती थी? रोज सोचती और बच्चियों का मुंह देखकर रोती रहती थी।
इसी बीच पंजाब में चुनाव थे, भगवंत मान बठिंडा आए थे। बोला कि चुनाव जीतते ही 100 दिन में चिट्टे पर रोक लगा दूंगा। जब उनकी सरकार में भी नशा कम नहीं हुआ तो मैंने बस्ती के मोड़ पर धरना शुरू कर दिया। पहले दिन मैं अकेले ही बैठी थी। फिर मैंने वहीं रहना शुरू कर दिया तो बस्ती की कुछ और महिलाएं भी आने लगीं।
कुछ दिन के बाद हम औरतें दिन-रात वहीं रहने लगीं। मेरी बहू और बच्चे खाना ले आते थे, लेकिन बेटा मेरे पास कभी नहीं आया। मैं जब मोड़ पर बैठी तो देखा कि नशा बेचने वाले वहीं आते हैं और चुपके से मोटरसाइकिल पर बैठे रहते थे। मेरा बेटा भी आता था और उन्हीं से चिट्टा लेकर चला जाता था। यह देखकर एक मां पर क्या गुजरती है, मैं ही जानती हूं।
कुछ दिनों के बाद हमारे धरना प्रदर्शन से पुलिस को दिक्कत होने लगी। पहले पुलिस ने हमें वहां से हट जाने के लिए कहा। हम डटे रहे तो फिर एक रात पुलिस हमें भगाने ही आ गई। बस्ती की महिलाएं साथ थीं तो कुछ कर नहीं पाई, लेकिन मैं समझ गई कि अब यह लोग नहीं मानेंगे।
मैंने धरना जारी रखा और बड़े अधिकारियों को फोन भी किया। वह लोग आए, बहुत अच्छी तरह से बात की। उनकी बातचीत से मुझे लगा कि मेरी बस्ती में से तो इस बार नशा खत्म ही हो जाएगा, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। बस इतना ही हुआ कि पुलिस ने आकर तंग करना बंद कर दिया।
अब हाल यह है कि मेरे बैंक अकाउंट में 150 रुपया भी नहीं है। बेटा नशा करके पड़ा रहता है। बहू थोड़ा बहुत कमा कर लाती है तो घर में खाना बनता है। आप इतना समझ लें कि घर में छह लोग हैं और कमाने वाली बस अकेली बहू है। ये परमिंदर कौर का घर है। बेटे की मौत कब हो जाए पता नहीं। बहू अकेली कमाती है। वह बहू की मदद तो करना चाहती हैं, लेकिन फिलहाल उनके लिए ड्रग्स के खिलाफ लड़ाई जरूरी है।
ये परमिंदर कौर का घर है। बेटे की मौत कब हो जाए पता नहीं। बहू अकेली कमाती है। वह बहू की मदद तो करना चाहती हैं, लेकिन फिलहाल उनके लिए ड्रग्स के खिलाफ लड़ाई जरूरी है। घर की स्थिति से मैं वाकिफ हूं। दुख भी होता है बहू को देखकर। इसके बावजूद मैंने तय कर लिया है कि जब तक चिट्टा बिकना बंद नहीं होगा, मैं धरने पर ही रहूंगी। दिन में घर आती हूं, शाम को धरने पर बैठती हूं।
आज जब आपसे बातचीत करने के लिए घर आई तो पता चला कि सिर्फ दो दिन का खाना बचा है। इस बात की कोई परवाह नहीं। मैं अपने मकसद पर अडिग हूं। भूख बहुत बड़ी बात नहीं, सड़क किनारे रहने वाला कुत्ता भी पेट भर लेता है, हम तो इंसान हैं। रास्ता कुछ न कुछ निकलेगा ही। परमिंदर कौर ने अपने जज्बात शाश्वत से साझा किए|
सौजन्य :दैनिक भास्कर
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