पंजीकृत प्रवासी श्रमिकों को दो महीने में राशन कार्ड प्रदान करें सरकार: सुप्रीम कोर्ट
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साल 2020 से सुप्रीम कोर्ट में लंबित प्रवासी मज़दूरों की समस्याओं पर एक स्वत: संज्ञान याचिका पर आदेश देते हुए अदालत ने केंद्र, राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को ईश्रम पोर्टल में पंजीकृत लेकिन एनएफएसए से बाहर रखे गए लगभग 8 करोड़ प्रवासी श्रमिकों को दो महीने के भीतर राशन कार्ड जारी करने का निर्देश दिया है|
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को ईश्रम पोर्टल में पंजीकृत लेकिन राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एनएफएसए) से बाहर रखे गए लगभग 8 करोड़ प्रवासी श्रमिकों को दो महीने के भीतर राशन कार्ड जारी करने का निर्देश दिया|
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, नागरिकों के एक समूह द्वारा यह बताए जाने के बाद कि कुल 28.8 करोड़ मजदूर पोर्टल पर पंजीकृत हैं, लगभग 8 करोड़ के पास एनएफएसए के तहत लाभ प्राप्त करने के लिए राशन कार्ड नहीं हैं|
यह आदेश 2020 से अदालत में लंबित प्रवासी मजदूरों की समस्याओं पर एक स्वत: संज्ञान याचिका में पारित किया गया है, जब कोविड महामारी के दौरान लगाए गए लॉकडाउन ने उनमें से कई श्रमिक शहरों में आय या भोजन की कमी के कारण गांवों में वापस चले गए थे|
श्रमिकों की दुर्दशा को ध्यान में रखते हुए जस्टिस हिमा कोहली और अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ ने केंद्र, राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को यह सुनिश्चित करने के लिए कहा कि ई-श्रम पोर्टल पर पंजीकृत सभी मजदूरों को राशन कार्ड प्रदान किए जाएं.
अदालत ने कहा कि यह निर्देश केंद्र को 20 अप्रैल, 2023 को जारी किया गया था और लगभग एक साल बाद भी इसका कोई अनुपालन नहीं हुआ है|
अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) ऐश्वर्या भाटी ने अदालत को बताया कि केंद्र अदालत के आदेश का पालन करने के लिए प्रतिबद्ध है और संकेत दिया कि सरकार एनएफएसए लाभार्थियों के डेटा को ई-श्रम पोर्टल में सूचीबद्ध लोगों के साथ मिलान करने की प्रक्रिया में है|
अदालत ने भाटी से कहा कि यह ई-केवाईसी प्रक्रिया लाभार्थियों को राशन कार्ड के वितरण को नहीं रोक सकती है और चूंकि सार्वजनिक वितरण प्रणाली राज्यों के अंतर्गत आती है, इसलिए पिछले साल अप्रैल के अपने आदेश का पालन करने के लिए दो महीने की अवधि दी गई|
अदालत ने कहा कि निर्देश संकलित होने से पहले ई-केवाईसी जैसी बाधाएं डालकर अनावश्यक देरी की जा रही थी. एनएफएसए लाभार्थियों के साथ ईश्रम पंजीकरणकर्ताओं के मिलान का कार्य पहले ही किया जा चुका है और उस आधार पर यह पाया गया है कि लगभग 8 करोड़ लोगों के पास राशन कार्ड नहीं हैं और इसलिए उन्हें अधिनियम के तहत मासिक खाद्यान्न का लाभ नहीं मिलता है|
स्वत: संज्ञान कार्यवाही में हस्तक्षेप करने वाले व्यक्तियों के एक समूह का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील प्रशांत भूषण ने अदालत को बताया कि प्रवासी मजदूरों को राशन कार्ड जारी नहीं किए जाते हैं क्योंकि एनएफएसए ग्रामीण क्षेत्रों में राशन कार्डों पर 75% और शहरी क्षेत्रों में 50% की सीमा प्रदान करता है, जो पहले ही ख़त्म हो चुका है.
शीर्ष अदालत ने तब राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को कोटा की परवाह किए बिना राशन कार्ड प्रदान करने का निर्देश दिया था.
याचिकाकर्ताओं की ओर से बताया गया कि एनएफएसए के तहत राशन पाने वाले व्यक्तियों का कवरेज नवीनतम जनगणना के आधार पर निर्धारित किया जाना है. चूंकि 2021 की जनगणना नहीं की गई है और जनसंख्या में वृद्धि होने के बावजूद कवरेज 2011 की जनगणना के आधार पर जारी है- जिससे 10 करोड़ से अधिक लोग खाद्य सुरक्षा जाल के दायरे से बाहर हो गए हैं.
इसमें कहा गया है कि चूंकि कवरेज नहीं बढ़ाया गया है, अधिकांश राज्यों ने एनएफएसए के तहत राशन कार्ड लाभार्थियों का कोटा समाप्त कर दिया है और नए कार्ड जारी करने में असमर्थ हैं|
भूषण ने अदालत को यह भी बताया कि एनएफएसए के तहत वर्तमान में 81.3 करोड़ लाभार्थी हैं, जिनकी गणना 2011 की जनगणना के अनुसार की गई है. उन्होंने कहा कि तब से एक दशक बीत चुका है, यदि जनगणना का आंकड़ा अपडेट नहीं किया गया तो लाभार्थियों का एक बड़ा हिस्सा खाद्य सुरक्षा दायरे से बाहर रहेगा.
कोर्ट इस मामले पर अगले महीने सुनवाई करेगा|
सौजन्य :द वायर
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