पति शहीद हुए…तब मैं मां बनने वाली थी:बेटी हुई तो ससुराल वालों ने घर से निकाला; 5 साल बीते, गांव में गेट बना न स्मारक

14 फरवरी 2019…सुबह के 10 बजे श्रीनगर में CRPF की 115 बटालियन में शामिल प्रदीप सिंह यादव ने अपनी प्रेग्नेंट पत्नी नीरज को फोन किया। तबीयत के बारे में पूछा। नीरज ने कहा कि पहले से थोड़ा ठीक है। प्रदीप ने कहा कि हम कोशिश करेंगे कि जल्द आ जाएं। इसके बाद शाम को फोन करने का कहकर रख दिया। दिन के 3 बजे थे। टीवी पर ब्रेकिंग आई कि पुलवामा में सेना की गाड़ी पर हमला, 40 जवान शहीद।
नीरज के लिए यह खबर किसी भयानक सपने जैसी थी। प्रदीप को फोन लगाया, लेकिन बात नहीं हुई। नीरज बेसुध हो गई। घर पर भीड़ जमा होने लगी। लोग नीरज को समझाते कि प्रदीप ठीक हैं, वह वापस आएंगे। प्रदीप लौटे, लेकिन तिरंगे में लिपटकर। शहीद पति का चेहरा देखने के बाद नीरज की चीख जिसके भी कानों तक पहुंची वह अपनी आंखों से आंसू नहीं रोक पाए।
पुलवामा हमले को आज 5 साल बीत गए। बिना प्रदीप के नीरज की जिंदगी बदल गई। बेटे को जन्म दिया। ससुराल के बाकी लोगों ने मुंह मोड़ लिया। सरकार ने मदद दी लेकिन कुछ वादे आज भी अधूरे रह गए। हम नीरज से मिले। हर मसले पर बात की। आइए सब कुछ शुरू से जानते हैं…
पिता जेल पुलिस में थे, इसलिए कानपुर में ही बचपन बीता
प्रदीप सिंह यादव का जन्म कन्नौज जिले के अजान-सुखसेनपुर में हुआ। पिता अमर सिंह जेल पुलिस में थे। कानपुर में उनकी पोस्टिंग थी। इसलिए प्रदीप और उनके छोटे भाई का बचपन यहीं बीता। प्रदीप का सपना था कि वह सेना में जाएं और देश की सेवा करें। उनका यह सपना 2003 में पूरा हो गया। वह सीआरपीएफ में सिलेक्ट हो गए। 2005 में परिवार ने उनकी शादी नीरज से कर दी। दोनों बेहद खुश थे। 2008 में नीरज ने एक बेटी को जन्म दिया। उसका नाम सुप्रिया रखा।
नीरज कहती हैं, बेटी के जन्म होने से परिवार के बाकी लोग जैसे दुखी हो गए हों। उन्होंने हम लोगों से किनारा करना शुरू कर दिया। हम लोगों को अलग रहने के लिए कह दिया गया। मैं प्रदीप के साथ बेटी को लेकर गांव में अपने ताई जी के घर रही। इसके बाद कानपुर में ही किराए का कमरा लिया और बेटी के साथ रही। प्रदीप की जब पोस्टिंग वाराणसी में हुई, तो हम लखनऊ में रहने लगे। लेकिन वक्त बीतने के साथ चीजें बदलने लगी। वाराणसी से उनका ट्रांसफर हो गया और हम वापस फिर से कानपुर लौट आए। 7 साल बाद यानी 2015 में दूसरी बेटी का जन्म हुआ।
शहीद होने के 4 दिन पहले ही ड्यूटी ज्वॉइन की थी
नीरज बताती हैं कि 2017 में उनका ट्रांसफर श्रीनगर में हो गया। हम सभी अब खुश थे। जीवन में किसी चीज की दिक्कत नहीं थी। प्रदीप ने कल्याणपुर में ही एक जमीन खरीद ली। इसी पर दो कमरे बनाकर हम लोग रहने लगे थे। वह रोज ही फोन करते और बेटियों से बात करते थे। पढ़ाई-लिखाई को लेकर खूब बात करते थे। जब भी छुट्टी मिलती, वह घर आते और बच्चों के साथ ही रहते थे। हमें किसी तरह की कोई दिक्कत नहीं थी।
दिसंबर, 2018 में प्रदीप घर आए थे। परिवार के साथ रहे। 29 जनवरी, 2019 को वह वापस श्रीनगर चले गए। लेकिन वहां की स्थिति कम ठीक थी। 10 दिन की छुट्टी बची थी, इसलिए 31 दिसंबर को दोबारा छुट्टी लेकर घर चले आए। 10 फरवरी को वापस ड्यूटी ज्वॉइन किया। नीरज बताती हैं कि उस वक्त में प्रेग्नेंट थी। 11 फरवरी को तबीयत खराब थी। प्रदीप ने रात में कहा कि कल हम बात करके छुट्टी लेंगे और तुम्हारे पास आ जाएंगे। अगले दिन हमारी तबीयत ठीक थी इसलिए उन्होंने आने का प्लान कैंसिल कर दिया।
14 फरवरी की सुबह 10 बजे प्रदीप ने नीरज को फोन किया। तबियत के बारे में पूछा और बताया कि हम आज जम्मू से श्रीनगर के लिए निकलेंगे। बर्फ से जमा रास्ता अब साफ हो गया है। करीब 10 मिनट की इस बातचीत में प्रदीप ने बेटी सिमरन से भी बात की। आखिर में नीरज से कहा कि अपना ख्याल रखना, हम जल्द ही आएंगे। अब निकल रहे हैं, रात में पहुंचकर बात करते हैं।
सीआरपीएक का काफिला 78 गाड़ियों से जम्मू से श्रीनगर के लिए निकला। इसमें कुल 2 हजार 500 जवान थे। काफिला जम्मू-श्रीनगर हाईवे से होते हुए 3 बजे पुलवामा जिले के अवंतिपुरा पहुंचा। तभी आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद का एक आतंकी आरडीएक्स भरी कार को लाकर सीआरपीएफ के काफिले में चल रही एक गाड़ी को टक्कर मार देता है। जोरदार धमाका हुआ। सारी गाड़ियों के चक्के थम गए। आसमान गुबार से भर गया। अगले कुछ मिनट तक कुछ नजर ही नहीं आया। धुंध हटी तो सड़क पर जवानों के मांस के लोथड़े पड़े दिखे। उन्हें पहचान पाना मुश्किल था।
पुलवामा में आतंकी हमले की खबर टीवी पर आ गई। नीरज ने देखा तो डर गई। फोन लगाया लेकिन प्रदीप का फोन बंद आ रहा था। आसपास के लोग इकट्ठा होने लगे। नीरज हर किसी से पूछ रहीं कि प्रदीप कैसे हैं। लोग बस यही कहते कि प्रदीप ठीक हैं, उन्हें कुछ नहीं हुआ है, वह वापस आ जाएंगे। कोई खबर नहीं मिलने से नीरज परेशान हो गई। शाम को एसपी अमरेंद्र प्रसाद सिंह घर पहुंचे और बताया कि प्रदीप शहीद हो गए। लोगों ने नीरज से यह खबर छिपाने की कोशिश की लेकिन लोगों की चुप्पी ने उन्हें यकीन दिलवा दिया कि नीरज अब नहीं रहें।
16 फरवरी की सुबह एक विशेष सजे हुए ट्रक से शहीद प्रदीप सिंह का शव उनके गांव पहुंचा। सीआरपीएफ के 30 जवान भी टोली के साथ थे। सीआरपीएफ के डीआईजी जीसी जसवीर सिंह संधू ने कंधा देकर प्रदीप के शव को नीचे उतारा। अंतिम दर्शन के लिए पत्नी नीरज को ले जाया गया। नीरज ने पति को इस हालत में देखा तो चीख पड़ी। उनके रोने की आवाज ने हर किसी की आंखों में आंसू ला दिया। नीरज बेहोश हो गईं। उन्हें वहां से उठाकर हॉस्पिटल ले जाया गया दूसरी तरफ बड़ी बेटी सुप्रिया ने अपने पिता को मुखाग्नि दी।
प्रदीप की मौत के 7वें दिन गांव में शांति पाठ का आयोजन किया गया। इसमें नीरज के साथ उनके सास-ससुर और देवर भी शामिल हुए। प्रदीप की शहादत से लगा था कि परिवार अब नीरज के साथ रहेगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। शांति पाठ कार्यक्रम में विवाद हो गया। स्थिति मारपीट तक पहुंच गई। इस तरह से नीरज अब पूरी तरह से अकेली हो गई। उनके पिता ने उन्हें और दो बेटियों को संभाला। 5 अगस्त 2019 को नीरज ने एक बेटे को जन्म दिया। उसका नाम प्रतीक रखा।
नीरज कहती हैं कि प्रतीक के रूप में प्रदीप वापस लौट आए हैं। प्रतीक सब कुछ जानता है, कहता है कि मेरे पापा सैनिक थे, उनकी वर्दी मैं पहनूंगा। मैं सेना में जाऊंगा। वह मुझे मम्मी नहीं बोलता, बल्कि नाम लेता है। प्रदीप के मौसेरे भाई सोनू को चाचा न कहकर भाई कहता है। यह सब हमने नहीं सिखाया, लेकिन वह ऐसा ही करता है। हमने पूछा कि क्या कभी प्रतीक के दादा-दादी भी प्रतीक से मिलने आते हैं? वह कहती हैं कि वो हमें देखना नहीं चाहते।
अपने पैसों से बनवा रही स्मृति स्थल
नीरज को केंद्र और राज्य सरकार की तरफ से आर्थिक मदद मिली। शिक्षा विभाग में उन्हें नौकरी मिली। उनकी दोनों बच्चियों की फीस अब अंबानी फाउंडेशन देता है। सरकार की तरफ से पहुंचे मंत्रियों ने कहा था कि प्रदीप सिंह की याद में स्मारक बनाया जाएगा। डीएम ने इसके लिए जमीन भी अलॉट कर दी लेकिन न ही स्मारक बनवाया और न ही गांव के बाहर गेट। हर जगह से निराश होकर नीरज ने खुद ही अपने पैसों से पति का स्मारक बनवाया। उसकी बाउंड्री करवाई।
नीरज कहती हैं कि हर बार 14 फरवरी को हम वहां गांव जाकर कार्यक्रम करते हैं, हमारे ससुर भी वहां जाते हैं लेकिन प्रदीप के भाई और मां अब वहां नहीं जाती। प्रदीप के हिस्से की जो जमीने हमें मिलने वाली थी वह भी नहीं मिली। हमें पूरी तरह से किनारे कर दिया गया है। तमाम संगठनों ने प्रदीप के शहीद होने पर परिवार की आर्थिक मदद की। लेकिन हमें कुछ भी नहीं मिला।
नीरज कहती हैं कि हमारे ससुर 2014 में रिटायर हुए। तब उन्होंने कोई प्रॉपर्टी नहीं खरीदी। 2019 में जब हमारे पति शहीद हुए तो उसके बाद उन्होंने नोएडा और कानपुर में फ्लैट खरीदे। सबकुछ अपने छोटे बेटे के नाम किया। हम चाहते हैं कि इसकी जांच हो। हमारे हिस्से में जो चीजें हैं वह हमें दी जाए। हमारे पास दो बेटियां हैं, एक बेटा है, उन सबका भविष्य मुझे देखना है।
इन तमाम परेशानियों के बीच वह अपने बच्चों को पढ़ा-लिखाकर काबिल बनाना चाहती हैं। बेटे को सेना में भेजना चाहती हैं। प्रशासन से चाहती हैं कि उन्हें उनका हक दिया जाए।
सौजन्य :लल्लू राम
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