pithoragarh news: जर्जर छात्रावास भवन में रहने को है मजबूर छात्र,खंडहर में तब्दील होता ‘सीमांत छात्रावास’

पिथौरागढ़. उत्तराखंड के सीमांत जिले पिथौरागढ़ के आर्थिक रूप से कमजोर अनुसूचित जाति-जनजाति के छात्रों को शिक्षा के क्षेत्र में आगे बढ़ाने के मकसद से 1969 में सीमांत छात्रावास की स्थापना की गई थी. ताकि पिथौरागढ़ के दूरदराज क्षेत्रों के छात्र निःशुल्क यहां रहकर अपनी पढ़ाई अच्छे से कर सकें. इसी हॉस्टल में रहकर कई छात्र ऊंचे मुकाम तक पहुंचे भी हैं, चाहे वह शिक्षा का क्षेत्र हो या खेल का. लेकिन अब यह खंडहर में तब्दील होता जा रहा है। वर्तमान में यहां रहने वाले छात्र मजबूरी में टूटे-फूटे कमरों में रह रहे हैं. बारिश के दिनों में छत टपकती है और खिड़कियों से पानी की बौछार आता है । इतना ही नहीं, छात्र छत गिरने के डर के साये में रात बिताते है|
वर्तमान में हॉस्टल में 22 छात्र रह रहे है. यहां रहना उनकी मजबूरी है. सभी छात्र बार-बार प्रशासन से इसकी मरम्मत की गुहार लगा रहे है लेकिन अभी तक किसी ने भी इस ओर ध्यान नहीं दिया है, जिससे छात्रावास का यह भवन जर्जर हालात में पहुंच गया है. छात्रों ने जैसे-तैसे इसकी दीवारों पर अपने संसाधनों से रंग तो लगाया लेकिन दीवारों में पानी की इतनी लीकेज है कि पेंट भी नहीं टिक रहा है |
प्रशासन कर रहा है नजरंदाज :
छात्रों ने ‘न्यूज़ 18 लोकल’ के माध्यम से अपनी समस्या सबके सामने रखी है. पिथौरागढ़ के सुदूरवर्ती इलाके मुनस्यारी से यहां पढ़ाई करने आये छात्र सुनील कुमार बताते है कि इस समस्या को लेकर वह बार-बार शासन-प्रशासन को अवगत कराते आये है लेकिन उन्हें हमेशा नजरअंदाज किया जाता है. साथ ही उन्होंने कहा कि हल्के भूकंप के झटके में यह बिल्डिंग कभी भी गिर सकती है.
फंड के अभाव में छात्रावास की हालत जर्जर :
1969 में विधायक निधि से बने इस छात्रावास का संचालन अनुसूचित जाति-जनजाति कल्याण समिति करती है, जिनके शीर्ष अधिकारियों से संपर्क नहीं हो पाया और यहां के वार्डन रह चुके एक व्यक्ति ने बताया कि अब इस एनजीओ को फंड नहीं मिल पा रहा है, जिस कारण सीमांत छात्रावास की यह दुर्दशा हुई है. छात्रों की आर्थिक स्थिति उनके भविष्य पर भारी ना पड़े, इसको ध्यान में रखकर बनाये गए इस छात्रावास में आज छात्र मजबूरन इस स्थिति में यहां रह रहे हैं, जो एक बड़ी विडंबना है|
सौजन्य :hindi.news18
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