नृत्य की यह विधा है खास, साड़ी की धोती पहनकर थिरकते हैं आदिवासी युवा
जमशेदपुर । संताल समुदाय की कला व संस्कृति का अहम हिस्सा है- दासांय नृत्य। साड़ी की धोती और माथे पर साड़ी की पगड़ी पहन कर युवक मयूर पंख लगाए जब समवेत स्वर में थिरकते हैं, तो इसकी खूबसूरती मन मोह लेती है। इस नृत्य के पीछे कई रोचक किस्से प्रचलित हैं।
कोल्हान के गांवों में संताली समुदाय के बीच दशकों से प्रचलित दासांय नृत्य अब भी जिंदा है। यह पारंपरिक नृत्य शैली का एक प्रकार है। इसमें संताल युवक साड़ी की धोती और साड़ी की पगड़ी बांध कर लोक वाद्ययंत्र भुवंग की ताल पर एकसाथ थिरकते हैं। पगड़ी पर मोर के पंख सजाए हुए होते हैं। विभिन्न इलाकों में इस नृत्य से एक रोचक दंतकथा जुड़ी हुई है।
कहीं इसे महिषासुर वध से जोड़कर बताया जाता है, तो कहीं संतालों के कुलगुरु को खोजने के अभियान से। कहीं हुदुड़ दुर्गा की कथा भी प्रचलित है। हुदुड़ दुर्गाकथा यह है कि आदिवासियों के कुलगुरु हुदुड़ को किसी स्त्री के जरिए काबू कर किसी गुप्त स्थान में छिपा दिया गया। कुलगुरु को खोजने के लिए संताली युवाओं ने साड़ी की धोती व मयूर पंख लगाकर दुश्मनों के इलाके में जाकर नृत्य करने के बहाने उन्हें खोजने का अभियान चलाया।
साभार : दैनिक जागरण