UP: मायावती के इस दांव का नहीं दिख रहा धरातल पर असर… बसपा में ब्राह्मण भी हाशिए पर; इसलिए कार्यकर्ता मायूस
बसपा में दलितों को जोड़ने की कोई मुहिम नहीं दिख रही है। ब्राह्मण भी हाशिए पर हैं। बसपा सुप्रीमो मायावती का पार्टी से जुड़ने की अपील का धरातल पर असर कम दिख रहा है।
बसपा की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती की लोगों से पार्टी के साथ जुड़ने की अपील का धरातल पर असर नहीं दिख रहा है। पार्टी ने बीते कई सालों से पार्टी से दूर जा रहे दलित वोट बैंक पर दोबारा वर्चस्व बनाने की कोई बड़ी मुहिम शुरू नहीं की है तो कभी पार्टी का मजबूत आधार माने जाने वाला ब्राह्मण वोट बैंक भी हाशिए पर जा चुका है।
पार्टी के पदाधिकारियों का इस बाबत रवैया उदासीन है जिससे कार्यकर्ता भी मायूस होते जा रहे हैं। राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो बसपा का जनता से जुड़े मुद्दों पर आंदोलन से दूर रहना, सिर्फ बयानबाजी के सहारे लोकप्रियता हासिल करने की कवायद नुकसान पहुंचा रही है।
पहले पार्टी से तमाम जातियों के नेता जुड़े थे, जिनकी वजह से उनका वोट बैंक भी बढ़ा था। यही बसपा की सोशल इंजीनियरिंग के फॉर्मूले का मजबूत आधार बना था। हालांकि वर्ष 2012 में सत्ता से हटने के बाद बसपा के ऐसे नेताओं ने किनारा करना शुरू कर दिया।
अब पार्टी में चुनिंदा पदाधिकारी की सलाह पर ही नीतिगत फैसले हो रहे हैं, जिनका आम कार्यकर्ता से सरोकार नहीं होता है। पार्टी को अगर दोबारा पुरानी लोकप्रियता हासिल करनी है तो दलित वोटरों के साथ बाकी जातियों में भी गहरी पैठ बनानी होगी।
नेशनल को-ऑर्डिनेटर का पता नहीं, कैसे जुड़ेंगे युवा
प्रदेश में नौ सीटों पर होने वाले उपचुनाव में पार्टी के नेशनल को-ऑर्डिनेटर आकाश आनंद के सक्रिय नहीं होने से भी तमाम सवाल उठ रहे हैं। वहीं राष्ट्रीय महासचिव सतीश चंद्र मिश्रा और उनके परिजनों को पहले ब्राह्मणों को जोड़ने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी, जो फिलहाल धरातल पर नहीं दिख रही है।
जोनल को-ऑर्डिनेटर का काम भी सिर्फ प्रत्याशियों के नाम का चयन करके उन्हें बसपा सुप्रीमो तक पहुंचाने तक ही सीमित रह गया है। इससे अक्सर टिकट बेचे जाने के प्रकरण भी सामने आते रहते हैं जिससे पार्टी की छवि को गहरा नुकसान होता है।
सौजन्य: अमर उजाला
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