दलित साधुओं के महामंडलेश्वर बनने पर सवाल:उज्जैन में अखिल भारतीय पुजारी महासंघ ने कहा- इससे साधुओं का सम्मान कम होगा
अखाड़ा परिषद द्वारा 100 दलित वर्ग के साधुओं को महामंडलेश्वर बनाने की बात सामने आने के बाद महाकाल मंदिर के पुजारी और अखिल भारतीय पुजारी महासंघ ने आपत्ति ली है। आरोप लगाया कि साधु का कोई जाति या वर्ण नहीं होता, उसके लिए सभी समान होते हैं। साधुओं में एससीएसटी और दलित क्यों? दलित के नाम का जातिवाद होने लगेगा, तो देश में साधु संतों का जो मान सम्मान कम होगा या समाप्त होगा।
अखिल भारतीय पुजारी महासंघ ने अखाड़ा परिषद को एक पत्र लिखा है, जिसकी प्रतिलिपि पीएम और सीएम को भी भेजने की बात कही है। महासंघ के अध्यक्ष महेश पुजारी और सचिव रुपेश मेहता ने बताया कि मीडिया के माध्यम से पता लगा कि अखाड़ा परिषद 100 दलित साधुओं को महामंडलेश्वर बनाएगा। प्रसन्नता हुई, लेकिन मन में चिंता और दुख भी हुआ क्योंकि यदि साधुओं में भी दलित के नाम का जातिवाद होने लगेगा, तो देश में साधु संतो का जो मान सम्मान है, वह कम होगा या समाप्त होगा।
महेश पुजारी ने बताया कि जब किसी भी वर्ग का व्यक्ति साधु बनता है, तो वह स्वयं का पिंडदान कर देता है। उसका अपना अस्तित्व नहीं होता है। उसकी कोई जाति या वर्ण नहीं होता। उसके लिए सभी समान होते हैं, तो फिर साधुओं में दलित क्यों? अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष रवींद्र पुरी ने कहा कि इस वर्ग को समाज की मुख्य धारा से जोड़ना जरूरी है।
उन्होंने यह भी कहा कि दलित महामंडलेश्वर बनाएंगे, तो यह भी स्पष्ट करें कि क्या नवनियुक्त महामंडलेश्वर के नाम के आगे दलित लिखेंगे, क्योंकि आपने तो राजनैतिक गणित प्रतिशत और विश्लेषण के साथ प्रेस में वक्तव्य दिया है। क्या आपके अखाड़ों में इस वर्ग के लोग नहीं हैं? आपको इसका पता लगाना चाहिए और अखाड़ों के जितने भी महामंडलेश्वर हे उनकी जातिगत आधार पर सूची हिंदू समाज के सामने प्रस्तुत करना चाहिए। सभी की अलग पहचान के लिए जो महामंडलेश्वर जिस समुदाय से आते हो, उनके नाम के आगे उपनाम में यह भी लिखे की यह ब्राह्मण हे ,क्षत्रिय हे ,वैश्य हे या दलित है।
रुपेश मेहता ने बताया कि वर्तमान में हमारे उज्जैन के संत को भारत सरकार द्वारा राज्यसभा सदस्य मनोनीत किया है। वह वाल्मीकि समुदाय से आते है। ऐसा भी पता चला हे की चारधाम के महामंडलेश्वर प्रजापत(कुम्हार) समाज से आते हैं ऐसे और भी कई संत है जो सभी समाजों से आते हैं।आपके संत समुदाय में तो पहले से ही समरसता हैं तो आज जातिवाद का नया बीजारोपण क्यों?
यह सनातन धर्म संस्कृति के लिए घातक हैं। एक और प्रश्न आपसे निवेदन करते है की यदि 100 महामंडलेश्वर नियुक्त होने के बाद इनके द्वारा आपसे अखाड़ा परिषद अध्यक्ष पद की मांग की जाती हे तो क्या सामाजिक समरसता और समभाव के लिए आप अपने अध्यक्ष पद का त्याग करेंगे। जिस दिन सनातन धर्म में राजनैतिक हस्तक्षेप बंद हो जाएगा, उस दिन से सनातन धर्म की ध्वजा का परचम विश्व में लहराएगा। अखिल भारतीय पुजारी महासंघ निवेदन करता है कि साधु संतों में दलित का वर्गीकरण कर उनका अपमान नहीं कराए।
सौजन्य :दैनिक भास्कर
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