IIT के आरक्षण/कोटा में झोल? फैकल्टी-PhD लेवल पर SC-ST-OBC को सीटें देने से किया मना: RTI
“2023-24 में पीएचडी एडमिशन के दौरान भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) खड़गपुर ने 34 सीटें अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST) और अन्य पिछड़ी जाति (OBC) समुदायों से आने वाले छात्रों को देने से इनकार कर दिया था.”
“आईआईटी खड़गपुर में [कुल 45 में से] 43 विभागों में एसटी समुदाय से संबंधित एक भी फैकल्टी मेंबर नहीं है.”
“2023 में आईआईटी खड़गपुर में एससी/एसटी/ओबीसी समुदायों से जुड़ी किसी भी महिला फैकल्टी की भर्ती नहीं की गई थी.”
यह डेटा इस साल 6 फरवरी को सूचना के अधिकार (आरटीआई) के जरिए मिले जवाब के आधार पर आईआईटी बॉम्बे छात्र समूह अंबेडकर पेरियार फुले स्टडी सर्कल (एपीपीएससी) ने शेयर किया है.
बुधवार, 6 मार्च को माइक्रोब्लॉगिंग प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ पर शेयर की गई एक पोस्ट में स्टूडेंट ग्रुप ने आरोप लगाया कि सरकार और न्यायपालिका के आदेशों के बावजूद आईआईटी खड़गपुर 2023 में भी फैकल्टी भर्ती और पीएचडी एडमिशन में आरक्षण मानदंडों का उल्लंघन कर रहा है.
फैकल्टी में प्रतिनिधित्व की कमी, आरक्षण के उल्लंघन है और इस वजह से हाशिए पर रहने वाले समुदायों के छात्रों को रोजमर्रा के उत्पीड़न और भेदभाव का सामना करना पड़ता है, जो अक्सर आत्महत्याओं के लिए प्रेरित करता है. यह उन पर संस्थागत हिंसा है.
APPSC
इस साल की शुरुआत में, एपीपीएससी ने आरटीआई के जवाब के आधार पर दावा किया था कि आईआईटी दिल्ली और आईआईटी कानपुर भी पीएचडी एडमिशन और फैकल्टी भर्ती में आरक्षण नीति का उल्लंघन कर रहे थे.
4 दिसंबर 2023 को लोकसभा में दिए गए एक जवाब के मुताबिक, पिछले पांच सालों में 13,500 से अधिक एससी, एसटी और ओबीसी छात्रों ने केंद्रीय विश्वविद्यालयों, आईआईटी और आईआईएम में कोर्स छोड़ा है.
उच्च शिक्षा में विविधता के लिए काम करने वाले आईआईटी कानपुर और आईआईएम कलकत्ता के पूर्व छात्र धीरज सिंह ने कहा, “सीटों से इनकार करना जातिगत भेदभाव के अलावा और कुछ नहीं है. आईआईटी को नियुक्ति के सभी लेवल पर होने वाले भेदभाव पर सफाई देने की जरूरत है.”
‘IIT खड़गपुर के 23 विभागों में किसी SC/ST/OBC फैकल्टी की भर्ती नहीं हुई’
क्विंट हिंदी के पास मौजूद आरटीआई के जवाब की कॉपी है, उसके मुताबिक, जनवरी 2024 तक के आंकड़ों के मुताबिक, आईआईटी खड़गपुर में 742 फैकल्टी मेंबर हैं, जिनमें से 683 या 92 प्रतिशत सामान्य श्रेणी के हैं. इस बीच, 40 (या 5.4 प्रतिशत) ओबीसी श्रेणी के हैं; 17 (या 2.3 प्रतिशत) एससी वर्ग से हैं और केवल दो (या 0.27 प्रतिशत) एसटी समुदाय से हैं|
जनरल कैटेगरी के 683 फैकल्टी में से दो आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग की श्रेणी वाले शामिल हैं जो केवल गैर-आरक्षित जातियों के लिए खुली हैं.
IIT संस्थानों में SC/ST/OBC प्रतिनिधित्व को लेकर RTI डेटा क्या खुलासा कर रही है?
सोर्स: आरटीआई का जवाब
छात्र संगठन ने कहा कि यह “संवैधानिक प्रावधानों का साफ उल्लंघन करता है” जो कोर्स में एडमिशन और फैकल्टी भर्ती में एससी समुदाय के लिए 15 प्रतिशत सीटें, एसटी समुदाय के लिए 7.5 प्रतिशत और ओबीसी समुदाय के लिए 27 प्रतिशत सीटें आवंटित किया गया है.
इसके अलावा, आईआईटी खड़गपुर के कुल 45 विभागों में से 43 में एक भी एसटी फैकल्टी मेंबर नहीं है; 32 विभागों में एससी समुदाय से आने वाले फैकल्टी नहीं है और 23 विभागों में ओबीसी समुदाय से जुड़े कोई फैकल्टी मेंबर नहीं हैं.
दरअसल, आरटीआई के जवाब के मुताबिक, इस साल जनवरी तक आईआईटी खड़गपुर में एक भी महिला एसटी फैकल्टी नहीं थीं.
साल 2023 में एक अफसोसनाक तस्वीर सामने आती है, देश की नामी संस्थान एसटी समुदाय से एक भी फैकल्टी मेंबर को काम पर नहीं रखता है.
IIT संस्थानों में SC/ST/OBC प्रतिनिधित्व को लेकर RTI डेटा क्या खुलासा कर रही है?
सोर्स: आरटीआई का जवाब
आरटीआई के जवाब के अनुसार, पिछले साल आईआईटी खड़गपुर द्वारा नियुक्त किए गए कुल 101 फैकल्टी मेंबर में से सिर्फ दो एससी समुदाय के हैं, जबकि 10 ओबीसी समाज से आते हैं|
इसी तरह, 2023-24 में पीएचडी एडमिशन के मामले में, आईआईटी खड़गपुर में 345 छात्रों में से 182 जनरल कैटेगरी के थे. इस बीच, 46 छात्र (या 13.3 प्रतिशत) एससी वर्ग से, 9 छात्र (या 2.60 प्रतिशत) एसटी वर्ग से और 82 छात्र (या 23.7 प्रतिशत) ओबीसी वर्ग से थे.
IIT संस्थानों में SC/ST/OBC प्रतिनिधित्व को लेकर RTI डेटा क्या खुलासा कर रही है?
सोर्स: आरटीआई का जवाब
APPSC ने आरोप लगाया कि ऐसा करके आईआईटी खड़गपुर ने हाशिए पर रहने वाले समुदायों के पीएचडी कैंडिडेट्स को 34 सीटें देने से इनकार कर दिया था. छात्र संगठन के एक सदस्य ने क्विंट हिंदी को बताया कि चूंकि आईआईटी ने हर कैटेगरी के लिए खाली सीटों की संख्या का खुलासा नहीं किया है, इसलिए उन्होंने कुल सीटों के आधार पर इसकी गणना की है.
एपीपीएससी के एक सदस्य ने नाराजगी जाहिर करते हुए कहा, “यह एक आईआईटी का एक साल का डेटा है. अगर आप पिछले पांच सालों के लिए 22 आईआईटी की गणना करें, तो एससी, एसटी और ओबीसी छात्रों को वंचित सीटों की संख्या सैकड़ों में होगी. आरक्षण नीति के उल्लंघन के लिए आईआईटी को जिम्मेदार क्यों नहीं ठहराया जा रहा है? अदालतों को हस्तक्षेप करने से कौन रोक रहा है?”
क्विंट हिंदी ने आरक्षण नीति के उल्लंघन के आरोपों पर जवाब के लिए आईआईटी खड़गपुर से संपर्क किया और उनके जवाब देने के बाद इस आर्टिकल को अपडेट किया जाएगा.
IIT दिल्ली ने 2023-24 में 132 सीटें देने से इनकार किया
आरटीआई के जवाब के अनुसार, जिसकी एक कॉपी क्विंट हिंदी के पास है, आईआईटी दिल्ली के कुल 32 डिपार्टमेंट में से 25 में एक भी एसटी छात्र नहीं था, 10 में एक भी एससी छात्र नहीं था और छह डिपार्टमेंट में एक भी ओबीसी छात्र नहीं था.
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सोर्स: आरटीआई का जवाब
जैसा कि आरटीआई के जवाब से संकेत मिलता है, एकेडमिक ईयर 2023-24 में सेलेक्ट हुए कुल 676 पीएचडी कैंडिडेट्स में से (473 या लगभग 70 प्रतिशत) जनरल कैटेगरी के थे. इस बीच, 57 (8.43 प्रतिशत) छात्र एससी समुदाय से थे, 11 (या 1.62 प्रतिशत) एसटी समुदाय से और 135 (या 19.9 प्रतिशत) ओबीसी समुदाय से थे|
एपीपीएससी ने सोशल मीडिया एक्स पर एक पोस्ट में आरोप लगाया कि ऐसा करके, आईआईटी दिल्ली ने “कुल 132 सीटों से इनकार कर दिया” – एससी छात्रों को 44, एसटी छात्रों को 40 और ओबीसी छात्रों को 48 – और आरक्षण नीति का उल्लंघन किया.
एसटी समुदायों में महिला छात्रों की संख्या एक दुखद तस्वीर पेश करती है, 2023-24 में आईआईटी दिल्ली में पीएचडी कोर्स के लिए सिर्फ दो महिलाओं को एडमिशन मिला.
एपीपीएससी सदस्य ने छात्रों के सुसाइड के खतरनाक संख्या की जिम्मेदारी आईआईटी को लेने की मांग करते हुए कहा, “विविधता कैंपस को लोकतांत्रिक बनाती है. हाशिए पर रहने वाले समुदायों से जुड़े लोगों को संपर्क करने के लिए कोई मिल सकता है. लेकिन आईआईटी में हमारा प्रतिनिधित्व बहुत कम है. अगर आप आईआईटी खड़गपुर या आईआईटी दिल्ली में एसटी छात्र हैं, तो आप किससे संपर्क करेंगे? सिस्टम आपको अलग-थलग करने के लिए बनाया गया है.”
चार छात्र – आयुष आशना, 20; अनिल कुमार, 21; पनव जैन 21, और 23 वर्षीय वरद नेरकर ने पिछले आठ महीनों में प्रमुख शैक्षणिक संस्थान में अपनी जान गंवाई है. इनमें से दो दलित समुदाय से थे, जबकि एक ओबीसी समुदाय से था|
आरक्षण नीति के उल्लंघन के आरोपों पर जवाब के लिए क्विंट हिंदी ने आईआईटी दिल्ली से संपर्क किया और उनके जवाब देने के बाद इस आर्टिकल को अपडेट किया जाएगा.
IIT कानपुर के 14 विभागों में कोई ST फैकल्टी नहीं
एपीपीएससी ने 29 जनवरी 2024 को मिले एक और आरटीआई के जवाब के आधार पर दावा किया, “हमारे लगातार अभियान और सरकार द्वारा एमएमआर (मिशन मोड भर्ती) के आदेश के बावजूद आईआईटी कानपुर ने फैकल्टी भर्ती में आरक्षण का उल्लंघन किया है.”
आरटीआई के जवाब के अनुसार, जिसकी एक कॉपी क्विंट हिंदी को मिली है, इस साल जनवरी तक आईआईटी कानपुर में कुल 567 फैकल्टी मेंबर में से 493 (लगभग 87 प्रतिशत) जनरल कैटेगरी के हैं. इस बीच, 24 (या 4 प्रतिशत) फैकल्टी मेंबर एससी समुदाय से, 6 (या 1 प्रतिशत) एसटी समुदाय से और 44 (या 7.7 प्रतिशत) ओबीसी समुदाय से हैं.
IIT संस्थानों में SC/ST/OBC प्रतिनिधित्व को लेकर RTI डेटा क्या खुलासा कर रही है?
सोर्स: आरटीआई का जवाब
1 जनवरी 2023 से, जनरल कैटेगरी के 34 के मुकाबले केवल दो एसटी, दो एससी और पांच ओबीसी फैकल्टी मेंबर आईआईटी कानपुर में शामिल हुए हैं|
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सोर्स: आरटीआई का जवाब
आंकड़ों से यह भी पता चलता है कि आईआईटी कानपुर की 19 ब्रांच में से आठ में एससी वर्ग से एक भी फैकल्टी मेंबर नहीं है, 14 में एसटी फैकल्टी नहीं है, जबकि तीन ब्रांच में ओबीसी कैटेगरी से एक भी फैकल्टी मेंबर नहीं हैं.
सिंह ने क्विंट हिंदी को बताया, “एमएमआर अनिवार्य रूप से सरकार द्वारा पीएचडी एडमिशन और फैकल्टी भर्ती में विविधता की कमी को पूरा करने के लिए लॉन्च किया गया था. लेकिन स्थानीय फैसले ऐसे हैं कि नियुक्ति के सभी लेवल पर पक्षपात साफ देखा जा सकता है.”
आरक्षण नीति के उल्लंघन के आरोपों पर जवाब के लिए क्विंट हिंदी ने आईआईटी कानपुर से संपर्क किया और उनके जवाब देने के बाद इस आर्टिकल को अपडेट किया जाएगा.
IIT बॉम्बे ने SC, ST,OBC छात्रों को 80 सीटें देने से इनकार किया
2023-24 में आईआईटी बॉम्बे द्वारा लिए गए 394 छात्रों में से 263 (या 66 प्रतिशत) जनरल कैटेगरी से थे. इस बीच, एससी समुदाय से जुड़े 36 (या 9 प्रतिशत) छात्र, एसटी समुदाय से आने वाले 12 (या 3 प्रतिशत) छात्र और ओबीसी से 83 (20 प्रतिशत) छात्रों को नामी संस्थान में एडमिशन मिला.
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सोर्स: आरटीआई का जवाब
20 डिपार्टमेंट ने 2023 में एक भी एसटी छात्र को एडमिशन नहीं दिया, 11 ने किसी भी एससी छात्र को एडमिशन नहीं दिया और पांच ने 2023-24 एकैडमिक ईयर में किसी भी ओबीसी छात्र को पीएचडी लेवल पर एडमिशन नहीं दिया.
हालांकि, आईआईटी बॉम्बे ने अपने खुद के एडमिशन द्वारा, जनरल कैटेगरी के लोगों के लिए 168 सीटें निर्धारित की थीं, पिछले साल सितंबर में एपीपीएससी द्वारा शेयर किए गए आरटीआई डेटा से संकेत मिलता है कि 263 सीटें – निर्धारित सीमा से 95 सीटें अधिक – सामान्य उम्मीदवारों को दी गईं.
उस समय, आईआईटी बॉम्बे ने कहा था कि वह पीएचडी के लिए कई कैटेगरी के तहत छात्रों को एडमिशन देता है और खाली सीटें 2024 स्प्रिंग एडमिशन सेशन में भरी जाएंगी|
9 सितंबर 2023 को, उन्होंने कहा: “संस्थान सभी पहलुओं में विविधता बनाए रखने का प्रयास करता है. हम दोहराते हैं कि सभी कार्यक्रमों में एडमिशन के दौरान सभी आरक्षण मानदंडों का पालन किया जाता है|
क्विंट हिंदी ने जिस एपीपीएससी सदस्य से बात की, उसने जोर देकर कहा कि आरक्षण नीति का उल्लंघन करने के लिए आईआईटी के खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए, सिंह का विचार था कि आरक्षण मानदंडों को पूरा करने के लिए भर्ती प्रक्रिया को विकेंद्रीकृत करने की आवश्यकता है.
आईआईटी के साथ-साथ आईआईएम में फैकल्टी पोस्ट पर हाशिए पर रहने वाले समुदायों के लिए पूर्ण समानता हासिल करने के लिए एक टार्गेट ईयर की घोषणा की जानी चाहिए. पीएचडी एडमिशन और फैकल्टी भर्ती में विविधता में तेजी लाने के लिए सालाना टार्गेट प्लान को लागू करने, निगरानी करने और इसे पूरा करने के लिए एक सेंट्रलाइज्ड एडमिशन और भर्ती एजेंसी संस्थान के स्तर पर पूर्वाग्रहों के कारण बनी रुकावटों को कम करेगी|(धीरज सिंह)
ज्यादातर आईआईटी में एससी/एसटी सेल को निष्क्रिय बताते हुए सिंह ने उच्च शिक्षा संस्थानों में एडमिशन, भर्ती, प्रोमोशन आदि में किसी भी जाति-आधारित भेदभाव की शिकायतों को हल करने में मदद के लिए एक केंद्रीकृत शिकायत निवारण एजेंसी की सिफारिश की|
सौजन्य :द क्विंट
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