विश्व पुस्तक मेले में बहुजन दृष्टिकोण व वैचारिकी से परिपूर्ण किताबें, आपके लिए
आगामी 10-18 फरवरी के बीच विश्व पुस्तक मेले में फारवर्ड प्रेस एक बार फिर मौजूद है। मेले के दौरान हॉल नंबर 2 के स्टॉल क्रमांक एम-27 पर सुधि पाठक हमारे प्रकाशन की किताबों का अवलोकन कर सकते हैं। इसके अलावा थोक खरीददारों की सहायता के लिए भी हमने विशेष प्रबंध किया है।
फारवर्ड प्रेस दलित-बहुजन सैद्धांतिकी और वैचारिकी के क्षेत्र में एक चिर-परिचित नाम है। आधुनिक भारतीय परिप्रेक्ष्य में बहुजन दृष्टिकोण व वैचारिकी को विस्तारित करने के क्रम में हमने जोतीराव फुले, सावित्रीबाई फुले, कबीर, पेरियार आदि क्रांतिकारी विचारकों की कृतियों को उच्च गुणवत्ता के साथ प्रकाशित किया है। इनमें अहम हैं संदर्भ-टिप्पणियों से सुसज्जित किताबों – जाति का विनाश, गुलामगिरी और हिंदू धर्म की पहेलियां – के अलावा कबीर के इतिहास पर सबसे प्रामाणिक मानी जानेवाली एफ.ई. केइ की प्रसिद्ध किताब ‘कबीर और कबीरपंथ’, जिसका अनुवाद कंवल भारती ने किया है।
कबीर को समग्रता में समेटे इस किताब के संबंध में कंवल भारती लिखते हैं कि “अभी तक हमने कबीर को हिंदू दृष्टिकोण से देखा, मुस्लिम दृष्टिकोण से देखा और दलित चिंतकों की दृष्टि से भी देखा; लेकिन ईसाई चिंतन-दृष्टि से कबीर साहेब का मूल्यांकन शायद पहली बार ब्रिटिश विद्वान एफ.ई. केइ (फ्रैंक अर्नेस्ट केइ) ने किया है, जो एक पादरी थे, और जिन्होंने लंदन विश्वविद्यालय से अपनी ‘डाक्ट्रेट’ के लिए कबीर को विषय के रूप में चुना था। यह थीसिस उन्होंने 1920 के दशक में लिखी थी। बाद में इस थीसिस को उन्होंने कुछ संशोधनों के साथ ‘कबीर एंड हिज़ फ़ाॅलोअर्स’ शीर्षक से प्रकाशित किया। यह कबीर के जीवन और सिद्धांतों पर अंग्रेजी में लिखा गया सर्वश्रेष्ठ ग्रंथ है, जिसका हिंदी में पहली बार अनुवाद किया गया है।”
फुले के विचारों को अग्रसारित करती हमारी दो पुस्तकें बेहद खास हैं। एक– ‘ब्राह्मणवाद की आड़ में गुलामगिरी’ और दूसरी– ‘सावित्रीनामा : सावित्रीबाई फुले का समग्र साहित्य’। सावित्रीबाई फुले द्वारा मूल मराठी में लिखी रचनाओं का हिंदी में अनुवाद उज्ज्वला म्हात्रे ने किया है। इस किताब की भूमिका में दिवंगत बहुजन विचारक प्रो. हरी नरके ने उद्धृत किया है कि “सावित्रीबाई ने जीवनपर्यंत जोतीराव को जिस तरह संबल, सहयोग और साथ दिया वह असाधारण और अतुलनीय था। पुरुषों और महिलाओं की समानता और दोनों के शांतिपूर्ण सहचर्य का जो आदर्श फुले दंपत्ति ने प्रस्तुत किया, वह काल और स्थान की सीमाओं से परे है। दोनों ने शिक्षा, सामाजिक न्याय, जाति उन्मूलन और पुरोहित वर्ग के प्रभुत्व का अंत करने के लिए जो सघन प्रयास किये, वे अतीत में तो महान थे ही, आज भी हमें रास्ता दिखलाते हैं।”
अनूदित किताबों की शृंखला में हम प्रस्तुत कर रहे हैं प्रो. कांचा आइलैय्या शेपर्ड की अत्यंत ही लोकप्रिय किताब ‘हिंदुत्व मुक्त भारत की ओर’। इस किताब ने कम समय में लोकप्रियता के शिखर को पार किया है। दलित-बहुजन समाज की आधुनिक सभ्यता में अहम योगदान को रेखांकित करती यह किताब उस भारत का रेखाचित्र खिंचती है, जिसमें वर्चस्ववाद का खात्मा निहित है। इस किताब में प्रो. शेपर्ड प्रस्ताव करते हैं कि “हिंदुत्व मुक्त भारत का पहला मुख्य एजेंडा एक निचले स्तर तक का आध्यात्मिक लोकतांत्रिक आधार निर्मित करना है। इसके लिए भारत के दलित-बहुजनों को एक ऐसी धार्मिक संरचना की ओर जाना होगा, जो आध्यात्मिक समानता के उनके अधिकार की गारंटी देता है और ऐसी व्यवस्थाओं की ओर जाना होगा, जो समान आध्यात्मिक अधिकारों की गारंटी देती हों। इसके लिए दलित-बहुजन नागरिक समाज को ब्राह्मणवाद और अपने ही अंदर की मूर्तिपूजा से लड़ने के लिए साहस और आत्मविश्वास अवश्य जुटाना चाहिए, क्योंकि दलित-बहुजन जातियां भी ब्राह्मणवादी मूर्तिपूजा से बाहर नहीं निकली हैं।”
इसके अलावा अनूदित किताबों में कैथरीन मेयो की बहुचर्चित कृति ‘मदर इंडिया’ इस बार भी पाठकों का ध्यान अपनी ओर खिंचने में कामयाब होगी। कंवल भारती की अथक मेहनत ने इस किताब को अहम तो बनाया ही है, साथ ही मौजूदा दौर में दलित विमर्श को एक नई दिशा में ले जाने का काम किया है। यह किताब बेशक 1920 के दशक के भारत की तस्वीर दिखाती है, लेकिन यह एक आईना है, जिसमें आज का भारत अपनी तस्वीर देख सकता है।
फारवर्ड प्रेस दलित-बहुजन वैचारिकी व इसके विस्तार के महत्व को विशेष रूप से रेखांकित करता है। इस क्रम में हम फिर लेकर आ रहे हैं 1970 के दशक के आरंभ में हुए दलित पैंथर आंदोलन के इतिहास पर जेवी पवार की किताब। हिंदी और अंग्रेजी में यह किताब हमारे स्टॉल पर उपलब्ध रहेगी। इस किताब के जरिए पाठक यह जान सकेंगे कि आंबेडकर के परिनिर्वाण के बाद कैसे आंबेडकरवादी आंदोलन अपने कर्तव्यपथ से विमुख हुआ और कैसे जेवी पवार, राजा ढाले और नामदेव ढसाल जैसे उत्साही दलित युवकों ने एक ऐसे आंदोलन की शुरुआत की, जिसने कम समय में ही मुंबई से लेकर दिल्ली तक में बैठे हुक्मरानों को ऊंघती नींद में दलितों के खिलाफ अत्याचार के विरोध में झकझोर कर रख दिया था।
फारवर्ड प्रेस बहुजन साहित्य की प्रासंगिकता को महत्व देता आया है। इसी क्रम में हमने प्रेमचंद की बहुजन कहानियों का प्रकाशन किया। प्रेमचंद की चयनित कहानियों से हमारे पाठक ब्रिटिशकालीन भारतीय साहित्य में बहुजन विमर्श को समझ सकेंगे। इसके संकलक व संपादक सुभाष चंद्र कुशवाहा हैं।
वहीं भारतीय राजनीति में सामाजिक न्याय की जड़ों व उसके फलाफल की तलाश करती ‘बिहार की चुनावी राजनीति’ किताब उन पाठकों को निश्चित रूप से पसंद आएगी, जो चुनावी इतिहास के सापेक्ष सामाजिक न्याय को समझना चाहते हैं। मौजूदा दौर में यह किताब अनेकानेक राजनीतिक सवालों का जवाब देने में सक्षम है।
सौजन्य : Forward press
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