झारखंड दलित सम्मेलन: सरकारी योजनाओं के बावजूद जन अधिकारों और बुनियादी सुविधाओं से वंचित दलित समुदाय
झारखंड दलित सम्मेलन में प्रतिभागियों ने एक स्वर में कहा कि दलितों के सामाजिक, राजनैतिक और आर्थिक शोषण के विरुद्ध एवं दलितों के संवैधानिक अधिकारों के लिए सामूहिक संघर्ष की ज़रूरत है। साथ ही देश में धार्मिक बहुसंख्यकवाद के विरुद्ध भी कड़े प्रतिरोध की जरूरत है।
देश की आज़ादी के 75 साल बाद भी बड़े आज पैमाने पर सवर्णों द्वारा दलितों के विरुद्ध सामाजिक, धार्मिक शोषण किया जा रहा है। अभी भी कई गावों के मंदिरों में घुसना दलितों के लिए एक अभिशाप ही बना हुआ है। मान-सम्मान के साथ जीना ही संघर्ष बना हुआ है।
वहीं शहरों में रह रहे सफाई कर्मचारियों को भी इन समस्याओं से जूझना पड़ता है। अभी भी राज्य में दलितों को मैला ढोने का काम करना पड़ रहा है। किसी तरह कॉलेज तक पढाई करने के बावजूद भी युवाओं को सफाई कर्मी का ही काम करना पड़ता है। ये तमाम बातें 4 मार्च 2023 को एक सामाजिक संगठन ‘झारखंड जनाधिकार महासभा’, द्वारा राज्य की राजधानी रांची के बगईचा में ‘झारखंड दलित सम्मेलन’ में उभरकर सामने आईं।
सम्मेलन में राज्य के कई ज़िलों से विभिन्न संगठनों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। जिनमें आदिवासी विकास परिषद, गांव गणराज्य, झारखंड किसान परिषद, यूएनएफ, एनसीडीएचआर, समाजवादी जन परिषद, डीजेकेएस नालंदा, अंबेडकर ग्राम विकास समिति, डीएचआरडी नेटवर्क और राजीव गांधी मेमोरियल ट्रस्ट के प्रतिनिधि शामिल रहे।सम्मेलन में राज्य के दलितों के जमीन के मुद्दों एवं देश में बढ़ते धार्मिक बहुसंख्यकवाद में दलितों के संघर्ष पर विस्तृत चर्चा की गयी।
चतरा व पलामू से आए प्रतिनिधियों ने बताया कि जिले के दलितों की, ख़ासकर भुइयां समुदाय के लोगों की जमीनों पर सवर्णों का सालों से कब्ज़ा है। वहीं, प्रशासन व पुलिस भी दोषियों का ही साथ देती है। दूसरी तरफ अनेक दलित भूमिहीन हैं। दलितों को जन अधिकारों, सरकारी योजनाओं और राशन, पेंशन, आवास जैसी बुनियादी सुविधाओं से वंचित रखा गया है।
सम्मेलन में बताया गया कि दशकों से जंगल किनारे ज़मीन पर रह रहे या खेती कर रहे दलितों को वन अधिकार कानून के अंतर्गत पट्टा नहीं दिया जाता है। दलितों पर हिंसा एवं उन पर फर्जी आरोपों के तहत मामले दर्ज करना तो आम बात हो गई है।
चर्चा के दौरान बताया गया कि दलितों का जाति प्रमाण पत्र न बनना एक बड़ी समस्या बन गया है। जाति प्रमाण पत्र न बनने के कारण दलितों के जीवन, खासकर आजीविका और शिक्षा पर व्यापक असर पड़ रहा है।
केंद्र सरकार व राज्य सरकार ने रोज़गार और आजीविका के लिए सहयोग की कई योजनाएं बना रखी हैं, लेकिन जाति प्रमाण पत्र न बनने की वजह से उन्हें इन योजनाओं का लाभ नहीं मिल पा रहा है।
सोचने का विषय है कि राज्य की जनसंख्या के अनुपात में 12% होने के बावज़ूद भी गावों और शहरों में बसने वाले दलित समुदाय की स्थिति यथावत है। वर्षों से अनुसूचित जाति आयोग निष्क्रिय है।
राज्य की 81 विधान सभा सीटों में 9 सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं। लेकिन विधान सभा तक में दलितों के मुद्दों पर चूं तक नहीं होती है। राज्य सरकार की हाल की रिपोर्ट के अनुसार प्रमोशन पाने वाले कुल सरकारी पदों में से केवल 4.45% पद पर ही दलित हैं।
वहीं दूसरी ओर इन मुद्दों के निराकरण के बजाए मोदी सरकार द्वारा धार्मिक बहुसंख्यकवाद की राजनीति की जा रही है।
सम्मेलन में आए सफाई कर्मचारी आन्दोलन के राष्ट्रीय नेता बेज़वाड़ा विल्सन ने कहा कि आज लोकतांत्रिक मूल्यों पर व्यापक हमले हो रहे हैं। दलित-आदिवासी-पिछड़ों-अल्पसंख्यकों के लोकतांत्रिक अधिकार सिकुड़ते जा रहे हैं।
बिहार में गया जिले के दलित आन्दोलन में दशकों से जुड़े कारू ने कहा कि आरएसएस,भाजपा द्वारा भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाने की कोशिशें की जा रही हैं। ऐसा राष्ट्र जहां हिन्दूओं, उनमें भी सवर्ण जाति के लोग प्रथम दर्जे के नागरिक होंगे और मुसलमान समेत अन्य अल्पसंख्यक धर्म व समुदायों के लोग दूसरे दर्जे के।
वर्ण व्यवस्था समाप्ति की बात तो कोई करता ही नहीं है, बल्कि बढ़ते हिंदुत्व के साथ सवर्ण जातियों का वर्चस्व भी बढ़ता दिख रहा है। अब तो भाजपा और आरएसएस के नेताओं द्वारा मनुस्मृति की तारीफ में खुलकर बयान दिए जा रहे हैं।
यह महज संयोग नहीं है कि मोदी के कार्यकाल में दलितों, आदिवासियों और पिछड़ों के आरक्षण प्रावधानों की अवहेलना हो रही है और आर्थिक पिछड़ेपन के नाम पर सवर्णों के लिए आरक्षण व्यवस्था (जो कि मूलतः गैरसंवैधानिक है) बना दी गयी है। यह पूर्व निर्धारित और प्रायोजित योजना के तहत हो रहा है।
विभिन्न जिलों के प्रतिभागियों ने कहा कि गांव-कस्बों में आरएसएस से जुड़े संगठनों द्वारा समाज का धार्मिक ध्रुवीकरण किया जा रहा है।
गुजरात से आईं सामाजिक कार्यकर्ता मंजुला प्रदीप ने गुजरात में दलितों पर शोषण एवं हिंदुत्व आधारित सामाजिक, राजनैतिक दमन व हिंसा के विषय पर वृहत चर्चा की।
सम्मेलन में प्रतिभागियों ने एक स्वर में कहा कि राज्य में दलितों के सामाजिक, राजनैतिक और आर्थिक शोषण के विरुद्ध एवं दलितों के संवैधानिक अधिकारों के लिए सामूहिक संघर्ष की ज़रूरत है। धार्मिक बहुसंख्यकवाद के विरुद्ध संघर्ष की ज़रूरत पर बल दिया जाएगा। राज्य सरकार को भी दलितों के मुद्दों के निराकरण की ओर ध्यान देना चाहिए। (विशद कुमार वरिष्ठ पत्रकार हैं एवं झारखंड में रहते हैं।)
सौजन्य :janjwar.com
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