बच्चियों से रेप के मामले में टॉप पर यूपी, जानिए कितनों को मिल पाती है सजा
POCSO के तहत दर्ज होने वाले मामले सबसे ज्यादा यूपी से हैं। बच्चियों के साथ रेप के कुल 40% मामले यूपी से ही आते हैं। इसके बाद पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु हैं।
27 नंवबर को लखनऊ से एक खबर आई कि शादी में बच्ची को कुछ लोग बहला कर अपने साथ ले गए, और बच्ची का शोषण किया। 27 नवंबर को ही यूपी के फतेहपुर में नाबालिग बच्ची का किडनैप कर रेप करने वालों को कोर्ट ने सजा सुनाई। यूपी में तकरीबन हर दिन ही इस तरह की खबरें सुनने को मिलती हैं। यूपी एक ऐसा राज्य है जहां बच्चियों के साथ रेप के सबसे मामले सामने आते हैं। आज हम बच्चियों के साथ हो रहे रेप से जुड़े कुछ सवालोें के जवाब जानने की कोशिश करेंगे।
4 साल में बच्चियों के साथ 9 हजार 703 केस सामने आए
1 जनवरी, 2015 से 30 अक्टूबर, 2019 के बीच यूपी में नाबालिग लड़कियों से बलात्कार के 9,703 मामले सामने आए। इनमें से 988 किशोरियों की बलात्कार के बाद हत्या कर दी गई। कुल 9703 रेप के मामलों में मात्र 1,105 आरोपियों को ही सजा मिल पाई।
यूपी में 2021 में हर तीन मिनट पर लड़कियों का रेप हुआ है। ये आंकड़े रिकॉर्ड सबसे ज्यादा हैं।
विशेषज्ञ ये बताते हैं कि रेप भावनात्मक रूप से तोड़ने वाले अपराधों में से एक अपराध है। अक्सर इस अपराध का कोई साक्ष्य या गवाह नहीं होता। बच्चियां अक्सर अपने ऊपर हुए इस अत्याचार को बता भी नहीं पातीं।
रेप करने वालों में करीबी सबसे ज्यादा
भारत में मेंटल हेल्थ और चाइल्ड एब्यूज के क्षेत्र में काम कर रहे एक्सपर्ट्स का मानना है कि रेप करने वाले ज्यादातर लोग पीड़िता के करीबी होते हैं। एक बात जो इन सभी अपराधियों में कॉमन होती है वो ये कि बच्चों का रेप करने वाला एक बहुत ही चालाक और शातिर इंसान होता है।
बच्चियों के साथ रेप या यौन शोषण करने वाले ज्यादातर लोग घर के ही होते हैं। एनडीटीवी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट मोनिका कुमार का कहना है कि “ रेप करने वाले ज्यादातर लोग दिमागी बीमारी का शिकार होते हैं, उन्हें इलाज की जरूरत होती है।
ज्यादातर कभी पकड़े नहीं जाते
जैसा की हमनें आपको पहले बताया कि यूपी में ज्यादातर रेपिस्ट कभी पकड़े नहीं जाते हैं। इसलिए वे बार-बार रेप जैसा अपराध करते रहते हैं।
अचानक इतने सारे मामले क्यों होने लगे
कुछ जानकार ये मानते हैं कि टीवी, फिल्म, और सोशल मीडिया का इसमें कुछ हद तक रोल है। पिछले कुछ सालों में, देश की अदालतें रेप जैसे मामले को लेकर पहले से ज्यादा संवेदनशील तो हुई हैं। इसके बावजूद भारत में 90 प्रतिशत रेप के मामले सामने ही नहीं आते हैं।
मनोवैज्ञानिक इस बात पर जोर देते हैं कि ज्यादातर रेप करने वाला बदला लेने, अपना गुस्सा शांत करने, और अपनी ताकत दिखाने के लिए भी करता है।
2014 में यूपी रेप के मामले में तीसरे नंबर पर था
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड्स ब्यूरो के आंकड़ों से पता चलता है कि पिछले 10 सालों में बच्चों के खिलाफ रेप और यौन शोषण में 336 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। पूरे देश में 2015 और 2016 के बीच ये आंकड़ा 82 प्रतिशत बढ़ गया। 2018 के सिर्फ पांच महीनोंं में ही अपराधों के आंकड़ें डराने वाले थे। 2014 में मध्य प्रदेश में बच्चियों का रेप सबसे ज्यादा हुआ, उसके बाद महाराष्ट्र, इस साल यूपी तीसरे नंबर पर था।
इस साल यूपी के बाद महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में बच्चियों का रेप सबसे ज्यादा होता है।
रेप की नई परिभाषा
पहले, केवल “पेनो-वेजाइनल असॉल्ट” को रेप माना जाता था। यानी अगर वैजाइना में चोट लगी है तो ही माना जाएगा कि आपका रेप हुआ है। बैंगलोर के एनफोल्ड ट्रस्ट के सह-संस्थापक, शैब्या सल्दान्हा ये बताती हैं कि “अब वैजाइना के अलावा शरीर के दूसरे हिस्से में आई चोट को भी सेक्सुअल असॉल्ट या रेप ही माना जाएगा।
2012 के पॉक्सो अधिनियम के बाद बाल-यौन-शोषण के मामलों में “बढ़ोतरी हुई है। POCSO मामलों में यूपी सबसे ऊपर है। कुल मामलों का 40% हिस्सा है यूपी का है, इसके बाद पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु हैं।
सौजन्य :पत्रिका
दिनाक :29 नवम्बर 20 22