आईआईटी में दाखिले से चूका दलित छात्र: सुप्रीम कोर्ट ने कहा- क्या पता 10 साल बाद वह देश का नेता बन जाए
आईआईटी बॉम्बे में फीस नहीं देने के कारण सीट लेने से चूके दलित समुदाय के एक छात्र का पक्ष लेते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अदालत को कभी-कभी कानून से ऊपर उठकर देखना चाहिए। क्या पता अगले 10 साल में ये लड़का हमारे देश का नेता बन जाए। ये छात्र क्रेडिट कार्ड के काम नहीं करने की वजह से फीस देने में चूक गया था।
अदालत को कभी-कभी कानून से ऊपर उठना चाहिए
शीर्ष अदालत ने केंद्र की ओर से पेश वकील को निर्देश दिया कि वह आईआईटी बॉम्बे में दाखिले का ब्योरा हासिल करे और इस संभावना का पता लगाए कि उसे किस तरह प्रवेश दिया जा सकता है। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस बीवी नागरत्न की पीठ ने कहा कि वह एक दलित छात्र है जो बिना किसी गलती के एक सीट से चूक गया। उसने आईआईटी परीक्षा पास की और आईआईटी बॉम्बे में प्रवेश लेने वाला था। कितने बच्चे ऐसा करने में सक्षम हैं? अदालत को कभी-कभी कानून से ऊपर उठना चाहिए। कौन जानता है कि 10 साल बाद वह हमारे देश का नेता हो सकता है।
बेंच ने संयुक्त सीट आवंटन प्राधिकरण और आईआईटी बॉम्बे की ओर से पेश अधिवक्ता सोनल जैन से कहा कि उन्हें 22 नवंबर तक छात्र को समायोजित करने की संभावना तलाशनी चाहिए और आईआईटी बॉम्बे में सीट की स्थिति के बारे में निर्देश लेना चाहिए।
हम भी दिखा सकते हैं याचिकाकर्ता को बाहर का दरवाजा
अदालत ने कहा, हम कानून के पांच अलग-अलग बिंदु भी उठाते हुए उसे बाहर का दरवाजा दिखा सकते हैं जैसा उच्च न्यायालय ने किया है। लेकिन यह एक मानवीय बात है और कभी-कभी हमें कानून से ऊपर उठना चाहिए। साथ ही अदालत ने सरकार के वकील को निर्देश लेने के लिए कहा और निर्देश दिया कि उसके आदेश को मिसाल नहीं माना जाए।
पीठ ने कहा कि वह अगले सोमवार (22 नवंबर) को आदेश पारित कर सकती है। प्रवेश परीक्षा में आरक्षित वर्ग में 864 रैंक प्राप्त करने वाले याचिकाकर्ता प्रिंस जयबीर सिंह की ओर से पेश अधिवक्ता अमोल चितले ने कहा कि अगर उन्हें आईआईटी बॉम्बे में प्रवेश नहीं मिलता है तो वह किसी अन्य आईआईटी में भी प्रवेश लेने को तैयार हैं।
सौजन्य : Amar ujala
नोट : यह समाचार मूलरूप से www.amarujala.com में प्रकाशित हुआ है. मानवाधिकारों के प्रति संवेदनशीलता व जागरूकता के उद्देश्य से प्रकाशित किया गया है !