हाथरस रेप-मर्डर के एक साल बाद भी ख़ौफ़ में है पीड़ित परिवार- ग्राउंड रिपोर्ट
“अगर इन लोगों (जातिसूचक शब्द) के घर के बाहर पुलिस बिठा दी जाएगी तो इससे ये ठाकुर थोड़े ही हो जाएंगे. जो हैं वहीं रहेंगे.”गांव की एक महिला के इस वाक्य में तथाकथित तौर पर ऊंची जाति से होने का अभिमान, दलितों के प्रति तिरस्कार और भारत के संविधान और क़ानून के प्रति बेरुख़ी बिलकुल साफ़ थी|
वो जातिसूचक शब्दों के इस्तेमाल को लेकर इतनी सहज थीं कि शायद उन्हें ये एहसास ही नहीं था कि जो वो बोल रही हैं वो क़ानूनी रूप से अपराध की श्रेणी में आता है| ये पूछने पर कि क्या वो गांव के दलितों के साथ बैठ सकती हैं या खा सकती हैं, वो हँसते हुए कहती हैं, “लगता है, तुम हरिजन हो जो ये सवाल कर रहे हो.”
उत्तर प्रदेश के हाथरस का ये गाँव बीते साल एक दलित लड़की के कथित गैंगरेप और हत्या के बाद चर्चा में आया था. इस अपराध के आरोप में गाँव के ही तथाकथित ऊँची जाति के चार अभियुक्त जेल में हैं.
देश-विदेश के मीडिया ने इस घटना को कवर किया था और भारत में दलितों की स्थिति को लेकर गंभीर बहस छिड़ी थी. लेकिन एक साल बाद इस गांव में जातिवाद की जड़ें पहले से भी गहरी नज़र आती हैं.
पीड़ित परिवार के साथ अब भी हो रहा है भेदभाव
पीड़ित परिवार के साथ बीबीसी संवाददाता
पीड़ित परिवार का आरोप है कि उन्हें अब भी जातिवाद का सामना करना पड़ रहा है. मृत लड़की के भाई बीबीसी से कहते हैं कि गांव में अब उनके परिवार के प्रति तिरस्कार पहले से ज्यादा है.
वो कहते हैं, “गाँव के ऊंची जाति के लोग हमें नीची नज़रों से देखते हैं. अभी कुछ दिन पहले मेरी भतीजी दूध लेने गई थी और चारपाई पर बैठ गई थी तो उसे दुत्कारते हुए उठा दिया गया.”
बच्ची की मां और मृत लड़की की भाभी कहती हैं, “मेरी बड़ी बेटी पांच साल की है, अब कुछ समझदार हो रही है, अच्छा-बुरा समझ रही है. कुछ दिन पहले ये सीआरपीएफ के एक सर के साथ डेरी पर दूध लेने चली गई थी. वहां सर ने उसे चारपाई पर बिठा दिया लेकिन ऊंची जाति के लोगों ने उसे चारपाई से उठा दिया. ये बात उसके दिल में बैठ गई है. वो अब दूध लेने नहीं जाती है.”
वो कहती हैं, “जातिवाद तब तक ख़त्म नहीं होगा जब तक इंसान की सोच नहीं बदलेगी. यहां ये सदियों से चलता आ रहा है, जैसे पहले जातिवाद होता था वैसे ही आज भी हो रहा है.”
गांव में कथित ऊंची जाति के जिन लोगों से हमने बात की उन्होंने बिना किसी हिचक के कहा कि वो दलितों को अपने बराबर नहीं समझते हैं. इनमें अभियुक्तों के परिवार के लोग भी शामिल थे.
सीआरपीएफ़ की सुरक्षा में हैं पीड़ित परिवार
हाथरस में पीड़ित परिवार सीआरपीएफ़ की सुरक्षा में है
सीआरपीएफ़ की 135 जवानों की एक कंपनी पीड़ित परिवार की सुरक्षा में हैं. परिवार से मिलने वालों को सुरक्षा जाँच के बाद मेटल डिटेक्टर से होकर गुज़रना होता है. जवान हर समय मुस्तैद नजर आते हैं.
सुरक्षा प्रोटोकॉल की वजह से परिवार के किसी सदस्य को बिना सुरक्षा के घर से निकलने की अनुमति नहीं है.
सीआरपीएफ़ ने पीड़िता के चाचा के घर के आंगन में ही अपना तंबू लगा लिया है.
पीड़ित परिवार का कहना है कि उन्हें अभी भी डर है और सुरक्षा की ज़रूरत है लेकिन सुरक्षा प्रोटोकॉल की वजह से परिवार एक तरह से अपने घर में ही क़ैद है.
14 सितंबर 2020 को क्या हुआ था?
बीस साल की युवती अपनी मां के साथ घर से करीब आधा किलोमीटर दूर घास काटने गई थी. आरोप है कि वहीं गांव के ही चार अभियुक्तों ने उसका रेप किया. पीड़िता की मां का कहना है कि जब वो उसके पास पहुंची थीं तो वह घायल थी और उसके कपड़े फटे हुए थे.
मृत लड़की की माँ और बड़ा भाई तुरंत उसे मोटरसाइकिल से करीब डेढ़ किलोमीटर दूर चंदपा थाने लेकर गए थे. यहां से उसे ज़िला अस्पताल ले जाया गया था और वहां से अलीगढ़ मेडिकल कॉलेज रेफ़र कर दिया गया था.
लड़की ने होश में आने के बाद अलीगढ़ मेडिकल कॉलेज में बयान दिया था जिसके आधार पर गैंगरेप का मुक़दमा दर्ज हुआ था.
अलीगढ़ से उसे 28 सितंबर को दिल्ली के सफ़दरजंग अस्पताल ले जाया गया था जहां अगले दिन उसकी मौत हो गई थी.
पुलिस ने बिना परिवार को चेहरा दिखाए तीस सितंबर को रात के अंधेरे में ही लड़की का अंतिम संस्कार कर दिया था जिसे लेकर काफ़ी हंगामा हुआ था.
इस मामले की जांच पहले यूपी पुलिस, फिर यूपी पुलिस की एसआईटी और उसके बाद सीबीआई ने की थी.
अभी क्या है मामले की स्थिति?
सीबीआई ने इस मामले में 11 अक्तूबर 2020 को एफ़आईआर दर्ज की थी और 18 दिसंबर 2020 को चार्जशीट दायर कर दी थी.
सीबीआई ने चारों अभियुक्तों पर हत्या और गैंगरेप के आरोप तय किए थे. चार्जशीट में यूपी पुलिस पर भी लापरवाही के आरोप लगाए गए थे.
पीड़िता के भाई के मुताबिक अब तक इस मामले में बीस से अधिक सुनवाइयाँ हो चुकी हैं. इस मामले की सुनवाई हाथरस के एससी-एसटी कोर्ट में हो रही है. पिछली सुनवाई 9 सितंबर को थी और अब अगली 23 सितंबर को है.
मृत लड़की के बड़े भाई बताते हैं, “मैं तारीख़ों पर जाता हूँ. इस समय गवाहों की गवाही और उनसे सवाल-जवाब चल रहे हैं.”
अभियुक्तों के परिजनों और कुछ समूहों ने आरोप लगाया था कि ये गैंगरेप का नहीं, बल्कि ऑनर किलिंग का मामला था. उन्होंने मृत युवती के बड़े भाई पर ही हत्या करने के आरोप लगाए थे|
मृत लड़की के भाई कहते हैं, “मुझसे सीबीआई ने हर तरह के सवाल किए थे और मैंने उन्हें जवाब दिए. सीबीआई ने सबूत जुटाए थे और अपनी चार्जशीट पेश की थी. सब जानते हैं चार्जशीट में क्या है. इन निराधार आरोपों से हम डरे नहीं, हमें अदालत पर पूरा भरोसा है.”
अभियुक्तों की तरफ से कई बार ज़मानत की याचिका दायर की गई है लेकिन हर बार उसे खारिज किया गया है. चारों अभियुक्त फिलहाल जेल में बंद हैं.
पूरी तरह बदल गया है जीवन
मृत लड़की का छोटा भाई पहले ग़ाज़ियाबाद में एक निजी लैब में नौकरी करता था. उसकी नौकरी छूट गई है. बड़ा भाई भी निजी नौकरी करता था वो भी घटना के बाद से घर पर ही है.
बड़े भाई का कहना है, “हमारी दिनचर्या बिलकुल बदल गई है. हमारा काम ठप्प हो चुका है. हम कहीं आते-जाते नहीं हैं. मैं प्राइवेट नौकरी कर रहा था वो छूट गई है. हम अपने घर में ही नज़रबंद ही है. हमारा पूरा साल दुखों में ही बीत गया है. हम इस कांड को कभी नहीं भूल पाएंगे. हमें अपने भविष्य को लेकर आशंकित हैं, हम नहीं जानते कि हमारा आगे जीवन कैसा होगा.”
वहीं छोटे भाई का कहना है, “अभी तो हम दुख में ही जी रहे हैं, पूरा दिन ऐसे ही घर में ही बीत जाता है, दोस्तों से मुलाकात भी नहीं हो पाती है, इस गांव में तो मेरा कोई दोस्त ही नहीं है. यहां गांव में रहकर कुछ हो नहीं पाएगा, करियर बनाने के लिए बाहर निकलना होगा. लेकिन सुरक्षा की वजह से हम बाहर नहीं निकल पाते हैं.”
इस घटना से कुछ दिन पहले ही मृत लड़की की भाभी ने अपनी तीसरी बेटी को जन्म दिया था. वो अब एक साल की हो गई है और चलने लगी है. छोटी बच्ची की माँ कहती हैं, “वो इसके जन्म पर कितना खुश होती, वो होती तो इसे गोद में खिला रही होती. हमारी एक बेटी चली गई और अब हमें अपनी बाकी बेटियों की चिंता है.”
वो कहती हैं, “हमारी बेटी चली गई, हम चेहरा तक नहीं देख पाए थे, जितना बुरा उस समय लगा था उतना ही बुरा आज भी लगता है. हम अपनी बेटी को भुला नहीं पाए हैं, आगे भी भुला नहीं पाएँगे.”
सरकार से नाराज़गी, अदालत पर भरोसा
पीड़ित परिवार को सरकार से भी नाराज़गी है. घटना के बाद सरकार ने पीड़ित परिवार की आर्थिक मदद करने के अलावा भाई को नौकरी और सरकारी मकान देने का वादा भी किया था लेकिन ये वादा अब तक पूरा नहीं हो सका है.
मृत लड़की के भाई कहते हैं, “सरकार ने उस वक्त 25 लाख रुपए की आर्थिक मदद की थी, हमारा ख़र्च उसी से चल रहा है लेकिन नौकरी और आवास देने का जो वादा किया गया था वो अभी तक पूरा नहीं हुआ है. इस दिशा में कोई काम भी नहीं हुआ है.”
वहीं उनकी पत्नी कहती हैं, “सरकार ने भले ही इस मामले को दबाने की पूरी कोशिश की लेकिन हमें अदालत पर पूरा भरोसा है, हमें उम्मीद है कि हमारी बेटी को इंसाफ़ मिलेगा.”
वो कहती हैं, “हमें सबसे ख़राब ये लगा कि प्रशासन ने हमें इतना-दबा कुचला समझा कि हमें दिखाए बिना ही हमारी बेटी का ज़बरदस्ती अंतिम संस्कार कर दिया गया. अब ये सिर्फ़ हमारी बेटी के इंसाफ़ की ही सवाल नहीं है, बल्कि भारत की बेटियों के साथ इंसाफ़ और सुरक्षा का सवाल है. हम ये बताना चाहते हैं कि हमें दबेंगे नहीं.”
सरकार के कामकाज पर टिप्पणी करते हुए वो कहती हैं, “अब चुनाव आने वाले हैं, नारी सुरक्षा को लेकर नारे दिए जाएँगे लेकिन बेटियों के लिए कुछ बदलने वाला नहीं है. मेरी अपनी तीन बेटियां हैं, सरकार बेटियों के प्रति कुछ ऐसा नहीं कर रही है कि वो सम्मान से जी पाएँ, बल्कि ऐसा माहौल बना दिया है कि ना जीते-जी सम्मान मिल रहा है और ना मरकर ही मिल रहा है.”
गांव छोड़ना चाहता है परिवार
हाथरस के इस गांव में वाल्मिकी समुदाय के चार घर हैं और बाकी आबादी कथित ऊँची जाति की है जिनमें अधिकतर ठाकुर हैं और कुछ ब्राह्मण परिवार हैं.
पीड़ित परिवार का कहना है कि वो इस गांव में कभी सुरक्षित नहीं रह पाएँगे और यहां अपना भविष्य नहीं बना पाएंगे. परिवार के सभी लोग गांव छोड़कर कहीं बाहर जाकर बसना चाहते हैं.
मृत लड़की का बड़ा भाई कहता है, “हमें नहीं लगता कि हम अपनी ज़िंदग़ी को यहां कभी पटरी पर ला पाएंगे. हमें इस गांव से निकलना हैं, लेकिन हम अभी नहीं जानते कि हम कहां जाएंगे और हमें सिर छुपाने के लिए कहां जगह मिलेगी. इस गांव में अब हमारा कोई रोजगार नहीं है, कुछ नहीं हैं. एक ना एक दिन हमें अब ये गांव छोड़कर जाना ही है.”
किस हाल में है अभियुक्तों के परिवार
इस मामले के अभियुक्तों के परिवार घटना के बाद से ही उनकी किसी भूमिका से इनकार करते रहे हैं. अभियुक्तों में से दो शादीशुदा हैं और उनके बच्चे हैं.
अभियुक्तों के परिवार मीडिया, प्रशासन और समाज से नाराज़गी जाहिर करते हुए कहते हैं कि ‘उनके बेटों को झूठ-मूठ फँसाया गया है.’
इन परिवारों की आर्थिक हालत भी बहुत ठीक नहीं हैं. परिजन अभी तक जेल में अभियुक्तों से मुलाक़ात नहीं कर सके हैं, जब तारीख़ पड़ती है तो वो उन्हें देखने अदालत जाते हैं.
अभियुक्तों के परिजन मीडिया से कहते हैं कि उनको भरोसा है कि वो निर्दोष हैं और एक दिन जेल से झूठ जाएँगे.
एक अभियुक्त की पत्नी कहती हैं, “मैं बिना पति के बच्चों को पाल रही हूं. मेरे पास कुछ भी नहीं हैं, दो भैंसे थीं वो बिक चुकी हैं. पति से जब फ़ोन पर बात होती है तो वो यही कहते हैं कि वो बेग़ुनाह हैं और एक दिन अदालत से छूट जाएंगे.”
एक अभियुक्त की माँ भावुक होते हुए कहती हैं, “हमारे बच्चों को झूठा फंसा दिया गया लेकिन हमें किसी ने नहीं पूछा, सब उनके घर ही जाते हैं. उन्हें तो ख़ूब पैसा भी मिल गया है जिससे वो पूरी ताक़त से मुक़दमा लड़ेंगे, हमारे पास तो कुछ भी नहीं है.”
गांव में सन्नाटा
ये मृतका की चिता की फ़ाइल तस्वीर है. जहां चिता जलाई गई थी अब वहां घास उग आई है, अंतिम संस्कार का कोई निशान बाकी नहीं है
हाथरस के इस गांव में सन्नाटा पसरा है. गिने-चुने लोग खेतों में काम करते नज़र आते हैं. पीड़िता के घर के पास गुज़रते हुए लोग अपनी मोटरसाइकिलों की स्पीड बढ़ा देते हैं. यहां लोग अब भी खुलकर बात नहीं करते हैं, मीडिया को देखकर सतर्क हो जाते हैं.
दलित परिवार को छोड़ दिया जाए तो बाकी लोग अभियुक्तों को बेग़ुनाह ही मानते हैं. दबी ज़बान में लोग कहते हैं, “चार मासूम लड़कों को झूठा फंसा दिया गया.”
गाँव से कुछ दूर जहां लड़की का अंतिम संस्कार हुआ था वहां अब घास उग आई है. वहां ऐसी कोई निशानी नहीं है जिससे पता चले कि वहाँ कभी किसी की लाश जलाई गई थी.
जब हम उस तरफ़ बढ़ रहे थे तो गांव के व्यक्ति ने आवाज़ देते हुए कहा, “वहां ऐसा क्या है जिसे देखने जा रहे हो. जो भी बाहर से आता है वहां क्यों जाता है. अब तो वहां कुछ भी नहीं है.”
सौजन्य :न्यूज़ नेशन
नोट : यह समाचार मूलरूप से newsnationtv.com में प्रकाशित हुआ है. मानवाधिकारों के प्रति संवेदनशीलता व जागरूकता के उद्देश्य से प्रकाशित किया गया है.