कैलेंडर कला एक मुद्रण रूप है जो व्यापक रूप से प्रसारित होता है और इसकी प्रतिमा समुदाय की मूर्तिपूजा और मूल्यों के स्थानीय रूपों का प्रतिनिधित्व करती है। कैलेंडर सांस्कृतिक कलाकृतियां हैं जिनके माध्यम से जन संस्कृति और रोजमर्रा की […]
कैलेंडर कला एक मुद्रण रूप है जो व्यापक रूप से प्रसारित होता है और इसकी प्रतिमा समुदाय की मूर्तिपूजा और मूल्यों के स्थानीय रूपों का प्रतिनिधित्व करती है। कैलेंडर सांस्कृतिक कलाकृतियां हैं जिनके माध्यम से जन संस्कृति और रोजमर्रा की […]
चाईबासा। झारखंड के पश्चिम सिंहभूमि जिला मुख्यालय चाईबासा से 84 किमी दूर है बंदगांव प्रखंड और प्रखंड मुख्यालय से लगभग 20 किमी दूर है कांडेयोंग वन ग्राम गांव। इस गांव में रहते हैं विलुप्त प्राय आदिम जनजाति बिरहोर के 20 […]
मध्य प्रदेश की एक जनसभा में गुरुवार को सनातन धर्म के विवाद पर अपनी चुप्पी तोड़ते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने महात्मा गांधी के बारे में कहा कि, ‘जिस सनातन ने उन्हें अस्पृश्यता के ख़िलाफ़ आंदोलन चलाने के लिए प्रेरित […]
दलित स्त्रियों साहित्य में तो लिखी गई, लेकिन साहित्य तक पहुच नहीं पाई… आज के आधुनिक भारत में जहाँ हम चाँद पर कदम रख रहे है, वही दूसरी तरफ हमारे समाज को आज भी जातिव्यवस्था और पितृसत्ता जैसे कुरतियां जकड़े […]
अनुमान है मोहन भागवत अपने बयान पर लंबे समय तक कायम रहने वाले नहीं हैं। लेकिन फिर भी इस पर बात होनी चाहिए। अगर सर संघचालक मोहन भागवत ने सनातन धर्म के बहाने दो हजार साल (की जातिगत असमानता) बनाम […]
देश में हर रोज लड़कियों के साथ हो रही अमानवीय घटनाएं इस बात का सुबूत हैं कि चांद-सितारों तक पहुंच चुके हम ऐसे समाज में रहते हैं जिसकी सोच का दायरा लड़कियों के लिए हैवानियत से भरा है राज्य कोई […]
सच यह है कि हिंदू राष्ट्र जितना मुसलमानों या अन्य धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए खतरा है, उससे अधिक वह हिंदू धर्म का हिस्सा कही जानी वाली महिलाओं, पिछड़ों और दलितों के लिए भी खतरनाक है, जिन्हें हिंदू धर्म दोयम दर्जे […]
दलित सांस्कृतिक चिंतन का पुनरूत्थान : दृष्टिकोण और उसकी सीमाएं महाराष्ट्र डॉ. आंबेडकर की राजनीतिक भूमि थी। यहां उन्होंने जिस दलित राजनीति की नींव डाली थी और उसे जिस तरह समझा और सूत्रबद्ध किया था, उसने 1970 के दशक में […]
200 सालों की ग़ुलामी के बाद जब आज़ादी के पन्ने लिखे गए, तब उसमें कुछ चुनिंदा लोगों या धर्म के नाम नहीं थे, बल्कि समूचे हिंद को ये अधिकार मिला कि वो आज़ाद हवा में सांस ले सकते हैं। अंग्रेज़ों […]
साल 1947 में 15 अगस्त को जब देश आज़ाद हुआ तो जानी-मानी इतिहासकार और नारीवादी उमा चक्रवर्ती महज़ छह साल की थीं और दिल्ली के एक स्कूल में पढ़ती थीं. लेकिन उस दिन की कई यादें आज भी उमा के […]
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