हम आपको बता दे कि दलित साहित्य से अभिप्राय दलित जीवन और उनकी समस्याओं पर लेखन को केंद्र मेव रखकर साहित्यिक आन्दोलन से है. दलितों को हिन्दू समाज की वर्ण व्यवस्था के सबसे निचले स्थान पर होने के कारण न्याय, […]
हम आपको बता दे कि दलित साहित्य से अभिप्राय दलित जीवन और उनकी समस्याओं पर लेखन को केंद्र मेव रखकर साहित्यिक आन्दोलन से है. दलितों को हिन्दू समाज की वर्ण व्यवस्था के सबसे निचले स्थान पर होने के कारण न्याय, […]
किसी ने सही कहा है कि “स्त्री पैदा नहीं होती, स्त्री बनाई जाती है”. हमारे जातिवादी व्यवस्था और पितृसत्ता समाज में रूढ़ीवाद रिवाजों से निकल कर अपने अधिकारों को लेना इतना आसन नहीं है. जब कोई भी स्त्री पैदा होती […]
“कोई उनको हब्शी कहता, कोई कहता नीच अछूत अबला कोई उन्हें बताएं, कोई कहे उन्हें मजबूत” ऊपर लिखी लाइन से आप समझ ही गए होंगे कि आज हम एक दलित, जबाज महिला के बारे में बात करने जा रहे है. […]
पीके रोजी, मलयालम सिनेमा की पहली अभिनेत्री थी. जिसकी प्रतिभा और हूनर को सराहना चाहिए था, और बढ़ावा देना चाहिए था. अफ़सोस इस पितृसत्तात्मक समाज और जातिगत भेदभाव के चलते, इनके हुनार को न सिर्फ कुचला गया बल्कि अपने अस्तित्व […]
भारत के दक्षिण में स्थित, केरल राज्य में 200, साल पहले त्रावणकोर में, व्यक्तियों के लिए उच्च जाति वाले लोगों की उपस्थिति में अपनी छाती को उजागर करने की प्रथा थी. इस प्रथा में महिलाओं को अपनी छाती पुरुषों और […]
‘सहादत हसन मंटो जी’ द्वारा लिखी यह लाइन हमारे समाज में महिलाओं की दयनीय स्थिति को समझाती है. हमारा समाज हमेशा से एक औरत को अपने सपनें और इच्छाओं को दबाकर, एक आदर्श नारी का उदाहरण पेश करने के लिए […]
साल 1947 में 15 अगस्त को जब देश आज़ाद हुआ तो जानी-मानी इतिहासकार और नारीवादी उमा चक्रवर्ती महज़ छह साल की थीं और दिल्ली के एक स्कूल में पढ़ती थीं. लेकिन उस दिन की कई यादें आज भी उमा के […]
इतिहास में 6 अगस्त का दिन बेहद दर्दनाक दिन माना जाता है क्योंकि इसी दिन अमेरिका वायु सेना के एक विमान ने जापान में स्थित हिरोशिमा पर 6 अगस्त 1945 को “लिटिल बॉय” नाम का पहला परमाणु बम गिराया। जिसके […]
किसी ने सही कहा है कि इंसान जन्म के साथ कुछ लेकर नहीं आता। कपड़े तक नहीं। लेकिन पैदा होते ही उसे जाति, धर्म, देश, लिंग, नस्ल सब कुछ बिन मांगे हासिल हो जाते हैं और ज़िंदगी भर उसे न […]
मुकुल शर्मा की किताब दलित और प्रकृति : जाति और पर्यावरण आंदोलन (वाणी प्रकाशन, पेपरबैक संस्करण, 2022) इस अर्थ में विशिष्ट है कि यह पर्यावरण के अध्ययन में पहली बार जाति, सत्ता, ब्राह्मणवाद और दलित स्वर के जटिल अन्त:सम्बन्धों की […]
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