‘महाभोज’ – सत्तातंत्र के दुश्चक्र में हाशिये का समाज
बीती सदी के उत्तर्रार्ध (1979) में जब मन्नू भंडारी का उपन्यास ‘महाभोज’ प्रकाशित हुआ था, तब न हिन्दी साहित्य में दलित विमर्श की गहमागहमी थी और न ही उत्तर भारत में दलित राजनीति की केन्द्रीयता। तब तक दलितों के प्रेरणास्रोत […]