बांदा: IIT Delhi में बीटेक के दलित छात्र की कैसे गई जान? भावुक करने वाली है बचपन से मेधावी मैथ ब्रिलियंट की कहान
मैथ में ब्रिलियंट और स्वभाव से शर्मीले बांदा के अनिल कुमार ने एक असामान्य यात्रा तय की। दलित छात्र ने अपनी मेहनत से पहले नवोदय विद्यालय में जगह बनाई। फिर एक छात्रवृत्ति के तहत जेईई की कोचिंग लेने पहुंचा और आईआईटी दिल्ली में अपनी सीट पक्की की। लेकिन फिर वह टूट गया। एक सितंबर को अनिल अपने हॉस्टल के कमरे में मृत पाया गया। जानिए अनिल कुमार की पूरी कहानी।
छात्रावास के कमरे में मृत पाए गए थे। मृतक की 45 वर्षीय मां विद्या देवी घर के आंगन में अमरूद के पेड़ की तरफ इशारा कर कहती हैं, “अनिल इस पेड़ से अमरूद तोड़ता था और वहां दीवार पर गेंद मारकर क्रिकेट खेलता था… वह कहता था कि विराट कोहली उसका फेवरेट है… लल्ला बकरियों को पालता था और उन्हें खाना भी खिलाता था, लेकिन कभी उन्हें पेड़ के तने से बांध नहीं पाता था। मेरा जो बेटा दो बकरी नहीं बाँध सका, अब उसके बा रे में कहा जा रहा है कि उसने फांसी लगा ली, मैं इस पर कैसे विश्वास करूं?” यह बताते हैं विद्या देवी की आंखें भर आती हैं।
आईआईटी दिल्ली में अनिल का एडमिशन साल 2019 में हुआ था। वह गणित और कंप्यूटिंग में बीटेक रहा था। आईआईटी के अधिकारी बताते हैं कि दूसरे और तीसरे वर्ष में कुछ कक्षाओं में फेल होने के बाद अनिल के पास अपने बैचमेट्स के साथ ग्रेजुएट होने के लिए पर्याप्त क्रेडिट नहीं था। अनुसूचित जाति (SC) से आने वाले अनिल को कॉलेज ने एक्सटेंशन दिया था।
अनिल के साथ परिवार की आखिरी बातचीत के दो दिन बाद 31 अगस्त को विद्या देवी के चार बच्चों में सबसे बड़े 31 वर्षीय अमित कुमार को आईआईटी दिल्ली से फोन आया। आर्ट स्ट्री म से ग्रेजुएट अमित बताते हैं, “यह वह बातचीत नहीं थी जिसकी मैंनेमैंनेअपने सबसे बुरे सपने में भी कल्पना की थी। मुझे नहीं पता था कि कॉल करने वाले पर विश्वास करूं या नहीं।हीं मुझे यकीन था कि मेरा भाई ऐसा कुछ नहीं करेगा।” अमित बांदा में टेम्पो चलाते हैं। वह परिवार के एकमात्र कमाने वाले सदस्य हैं। पिता सुरेश कुमार एक बस कंडक्टर थे। सितंबर 2020 में उनका निधन हो गया था।
उधार लेकर एम्बुलेंस किराए पर लिया
700 किलोमीटर दूर से अपने भाई का शव लाने के लिए अमित ने एक रिश्तेदार से 20,000 रुपये उधार लिया। उन पैसों से एक एम्बुलेंस किराए पर लिया। अमित बताते हैं, “मेरी पत्नी, मां और मैं तुरंत चले गए। जब हम कैंपस पहुंचे तो देखा कि अनिल का कमरा बाहर से बंद है। जब मैंनेमैंनेखिड़की से झांककर देखा तो फर्श पर खून पड़ा हुआ था। मुझे लगता है कि उसकी हत्या कर दी गई।” दिल्ली पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने पहले कहा था, “हमें अभी तक कोई सुसाइड नोट नहीं मिला है, लेकिन किसी साजिश का को ई संकेत नहीं है… यह पता चला है कि छात्र अच्छा प्रदर्शन नहीं कर रहा था, इससे वह मेंटल ट्रॉ मा में था …आगे की जांच जारी है।”
अनिल की मां बताती हैं कि जब 29 अगस्त को उन्होंनेन्हों नेफोन पर बातचीत की थी, तब सब कुछ नॉर्मल लग रहा था। वह कहती हैं, “हमेशा की तरह मैंनेमैंनेउनसे पूछा, लल्ला, क्या तुमने समय पर खाना खाया? और तुम्हें अपनी डिग्री कब तक मिलेगी? उसने मुझे बताया कि यह कॉलेज में उसका आखिरी साल था। मुझे यह जानकर खुशी हुई कि वह जल्द ही कमा ई करना शुरू कर देगा। हमने अगले दिन उसे फोन करने की कोशिश की। लेकिन उस दिन के बाद से उससे कभी बात नहीं हुई।”
क्या घर वालों को एक्सटेंशन के बारे में पता था?
अमित कहते हैं, “उसने हमें बताया था कि उसे कैंपस में एक साल ज्यादा बिताना होगा क्योंकि लॉकडाउन के दौरान वह एक साल के लिए घर पर था। अनिल इस जुलाई में अपने जन्मदिन पर घर आया था। हम इसका जश्न नहीं मना सके क्योंकिक्यों हम आर्थिक रूप से कमजोर हैं। तब हमें नहीं पता था कि यह हमारे साथ उसका आखिरी जन्मदिन होगा। उसके बाद वह दिल्ली चला गया और रक्षाबंधन के लिए घर नहीं आया।”
अनिल की मां धूल से भरा भूरे रंग का एक ट्रंक निकालती हैं। ट्रंक में अनिल की किताबें, तस्वीर, समर प्रोजेक्ट और उसकी लिखी कुछ कविताएं थीं।थीं विद्या देवी नोटबुक को सहलाते हुए कहती हैं, “लल्ला की लिखावट बहुत सुंदर थी ” दो माह पहले भी एक दलित छात्र ने की थी आत्महत्या समीकरणों और रेखाचित्रों के बीच उलझे अनिल ने आईआईटी दिल्ली में शा मिल होने से पहले अपनी एक नोटबुक में लिखा था: “बचपन से ही मेरा लक्ष्य एक वैज्ञानिक बनना था। तब मैं नहीं जानता था कि वैज्ञानिक बनाये नहीं जाते, पैदा होते हैं…”
अनिल की मौत से दो महीने पहले आईआईटी दिल्ली के ही एक अन्य छात्र आयुष आशना ने भी अपने छात्रावास के कमरे में आत्महत्या कर ली थी। अनिल की तरह बरेली (UP) निवासी आयुष भी एससी समुदाय से थे।
बचपन से मेधावी
परिवार के लोग और दोस्त बताते हैं कि अनिल बचपन में शर्मीला और दुबला-पतला था। उसे अपने बाल लंबे रखना पसंद था। अनिल ने अपनी प्राथमिक शिक्षा बांदा से लगभग 31 किमी दूर बबेरू तहसील के अपने गांव अनौसा से की। अमित बताते हैं, “जब से मेरे भाई ने लिखना शुरू किया, हम जानते थे कि वह मेधावी है… वह गणित में हमेशा बहुत शानदार था… यह उसका पसंदीदा विषय था। हमारा परिवार लगभग 15 साल पहले अपने गांव से बांदा के राजीव नगर में चला आया क्योंकिक्यों यहीं हमारे पिता की पोस्टिंग थी।”
इस वक्त तक अनिल ने जवाहर नवोदय विद्यालय (JNV) की प्रवेश परीक्षा पास कर, डुरेंडी स्थित जेएनवी के कक्षा 6 में शामिल हो गया था। जवाहर नवोदय विद्यालय केंद्र सरकार द्वारा संचालित स्कूल है, जो ग्रामीण क्षेत्रों से मेधावी छात्रों को परीक्षा के माध्यम से चुनती है। राजीव नगर से लगभग 10 किमी दूर केन नदी के तट पर स्थित डुरेंडी और जेएनवी छात्रावास अगले पांच वर्षों के लिए अनिल का घर हो गया। उनके परिवार का कहना है कि जेएनवी छात्रावास में रहने के दौरान अनिल नियमित रूप से उनसे मिलने आता था।
अनिल के सबसे करीबी दोस्तों में से एक ने बताया, “वह शर्मीला था। उसने कभी क्रिकेट नहीं खेला, लेकिन जब स्कूल की टीमें खेलती थीं तो वह हमेशा अपनी नोटबुक में स्कोर का हिसाब रखता था। उस स्कोरकीपिंग ने से स्कूल में पॉपुलर कर दिया था। लेकिन फिर भी उसे खुलकर सामने आने में समय लगा। जब वह घुलने-मिलने लगा तब, हमें एहसास हुआ कि वह असल में
काफी मजाकिया है।”
आईआईटी का दरवाजा कैसे खुला?
अनिल का दोस्त बताता है, “दक्षिणा फा उंडेशन (एक गैर सरकारी संगठन जो दो साल के जेईई और एनईईटी कोचिंग कार्यक्रम के लिए जेएनवी से कक्षा 10 के छात्रों का चयन करता है) ने हमारे स्कूल से सिर्फ मुझे और अनिल को ही चुना था। जेईई कोचिंग के लिए हम डुरेंडी से पहले हैदराबाद के रंगारेड्डी और फिर बूंदी (राजस्थान) गए।” कक्षा 10 में अनिल के गणित शिक्षक रहे 56 वर्षीय केपी अग्रवाल कहते हैं, “वह बहुत शांत बच्चा था और गणित में बहुत होशियार था। उसने 10वीं कक्षा की बोर्ड परीक्षा में गणित में A1 (90- 100 के बीच) स्कोर किया।”
अग्रवाल 2016 में महोबा जेएनवी में तैनात है। वह बताते हैं, “वैसे तो अनिल एक बहुत अच्छा छात्र था, लेकिन मुझे याद नहीं है कि उसने कैंपस में होने वाली एक्स्ट्रा करिकुलर एक्टिविटी (बहस, भाषण, क्विज़ आदि) में भाग लिया हो। मुझे यह जानकर दुख हुआ कि इतना प्रतिभाशाली छात्र अब नहीं रहा।”
जेएनवी में अनिल के दोस्त कहते हैं, “मुझे वह दिन याद है जब हमें आईआईटी में एडमिशन मिला था। उसने मुझे इस बात पर चर्चा के लिए बुलाया था कि हमें कौन सा ब्रांच चुनना चाहिए। यह उसके परिवार के लिए बहुत गर्व का दिन था।”
दोस्त और अनिल दोनों बांदा से 2017 में हैदराबाद के लिए रवाना हुए। यह पहला मौका था, जब अनिल अपने राज्य से बाहर गया था, “हालांकि अनिल शर्मीला था, लेकिन हैदराबाद में वह कुछ हद तक खुल गया। हमारे बचपन के दोस्तों में से कोई भी इस पर विश्वास नहीं करेगा, लेकिन एक बार हम दोनों ने क्लास बंक किया और उसके पसंदीदा कैफे में काठी रोल और चाउमीन खाने के लिए कोचिंग सेंटर की चारदीवारी को फांद गए।”
अगले साल पूरे कोचिंग बैच को बूंदी में ट्रां सफर कर दिया गया, जहां अनिल ने अपनी 12वीं कक्षा पूरी की। लगभग उसी समय काम पर जाते समय एक दुर्घटना में उनके पिता की रीढ़ की हड्डी टूट गई। अनिल के 12वीं कक्षा के एक बैचमेट याद करते हैं, “हम तब तक दो साल तक घर नहीं गए थे और हमेशा तनाव में रहते थे। अंत में दक्षिणा के 15 छात्र आईआईटी दिल्ली पहुंच गए!
आईआईटी में शुरुआती दिन
बूंदी से आईआईटी दिल्ली में दाखिला लेने वाले अनिल के बैचमेट गोविंद और पीयूष कहते हैं कि आईआईटी में पहला साल ‘मज़ेदार’ था शो देखना, इंटरनेट पर सर्फिंग करना और कैंपस के कार्यक्रमों में भाग लेना। अनिल तब सोशल मीडिया पर बहुत सक्रिय था और नियमित रूप से अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर मीम्स पोस्ट करता था। पीयूष कहते हैं, “उसका सेंस ऑफ ह्यू मर अच्छा था। वह बूंदी सेंटर में गणित में अपनी योग्यता के लिए जाने जाते थे।” गोविंद कहते हैं, “हम बूंदी में एक साथ थे और फिर आईआईटी दिल्ली में एक ही हॉस्टल में थे । इसलिए हम काफी करीब आ गए।”
गोविंद याद करते हैं कि स्केचिंग अनिल के जुनून में से एक थी। वह बताते हैं कि वह एनीमे, टीवी सीरीज और फिक्शन के पात्रों को स्केच करता था और उन्हें सोशल मीडिया पर शेयर करता था। पहले साल में कई अन्य लोगों की तरह अनिल ने भी अपने फोन पर बहुत समय बिताया लेकिन वह लोगों से ज्यादा बात करने वालों में से नहीं था। अगर आप उससे बात करेंगे तो वह आपसे बात करेगा। उसने कभी भी खुद से बातचीत शुरू नहीं की। पीयूष का कहना है कि पहले वर्ष के अंत में अनिल का क्युमुलेटिव ग्रेड पॉइंट औसत (सीजीपीए) 6.50 था, जो उसके ग्रुप के अन्य लोगों की तुलना में अधिक था। 2020 में जैसे ही देश में कोविड-19 लॉकडाउन हुआ और कॉलेज ऑनलाइन क्लासेज में बदल अनिल बांदा वापस चला गया। तब तक वह तीसरे सेमेस्टर में पहुंच चुका था। अनिल के जन्मदिन के कुछ महीने बाद सितंबर 2020 में उनके पिता का दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया।
अपने फ़ोन की गैलरी में स्वाइप करते हुए अनिल की मां जुलाई 2020 में अनिल के जन्मदिन पर ली गई तस्वीरों पर रुकती हैं, जो उनके पिता के साथ उनकी आखिरी तस्वीर थी। तस्वीर में अनिल का चेहरा केक से ढका हुआ है और वह बड़ी सी मुस्कान के साथ अपने माता-पिता के साथ पोज़ दे रहा है। मां याद करती हैं कि हमने उस साल उसके जन्मदिन पर बड़ा जश्न मनाया था। चूंकि अनिल को हरी सब्जियां पसंद नहीं थी इसलिए मैंनेमैंनेपूड़ी और पनी र बनाया था।”
कोविड-19 और दूरी
पीयूष कहते हैं, “महामारी के दौरान वह हमारी कॉल नहीं उठाता था।” अनिल के आईआईटी बैचमेट्स में से एक का कहना है, “अपने पिता की मृत्यु के बाद उसने खुद को हमसे दूर कर लिया। लॉकडाउन के दौरान मैं बांदा में था। मैं कई बार उसके घर गया और उससे क्रिकेट पर बातचीत शुरू करने की कोशिश की, जो उसे पसंद था, लेकिन उसने बहुत कम बात की। उसनएकेडमिक परफॉर्मेंस के बारे में बिल्कुल भी बात नहीं करना चाहता थेा ।”
अनिल के एक अन्य आईआईटी बैचमेट का कहना है, “पहले साल में अनिल का प्रदर्शन औसत से ऊपर था। उसकी दिक्कतें लॉकडाउन के बाद शुरू हुईं. घर वापस जाने के बाद उसने अपने पिता को खो दिया और उसका परिवार आर्थिक रूप से टूटने लगा।” बैचमेट कहते हैं, “हम जैसे छात्र, जिन्होंनेन्हों नेजीवन भर सरकारी स्कूलों में पढ़ा ई की है, उन्हें आईआईटी के सिलेबस को कंपीट करने में मुश्किल आती है। हममें से अधिकांश के पास घर पर पढ़ाई करने के लिए जगह या वाई-फाई जैसे सुविधा नहीं होती। भले ही हमें घर पर पढ़ाई के लिए कमरा मिल जाए, लेकिन ध्यान केंद्रित करना बेहद मुश्किल होता है। एक आईआईटियन के लिए लेक्चर के बाद रोजाना कम से कम 5-6 घंटे पढ़ाई करना अनिवार्य है। महामारी ने इसे लगभग असंभव बना दिया।”
संस्थान की नजर कब पड़ी?
द इंडियन एक्सप्रेस द्वारा देखे गए अनिल के अकादमिक रिकॉर्ड से यह स्पष्ट है कि महामारी और उनके पिता की मृत्यु के समय से यानी दूसरे वर्ष में उनके मार्क्स में गिरावट शुरू हो गई थी। क्या आईआईटी दिल्ली के पास लॉकडाउन के दौरान छात्रों,त्रों विशेषकर अनिल के प्रोग्रेस पर नज़र रखने के लिए कोई तंत्र था? इस सवाल पर एक अधिकारी ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया, “महामारी के दौरान छात्रों को एक बार के अपवाद के रूप में कई छूट दी गई थीं।थीं हमें उसके पिता की मृत्यु के बारे में तब पता चला जब वह लॉकडाउन के बाद वापस आया। तभी हमारे केयरटेकर ने उससे एकेडमिक परफॉर्मेंस के बारे में बात की। उन्हें अपनी डिग्री पूरी करने के लिए एक्सटेंशन दिया गया था।
आईआईटी दिल्ली के एक अन्य बैचमेट कहते हैं, “जब हम कोविड के बाद कॉलेज वापस आए तो हमने मान लिया कि वह अपने बैकलॉग के कारण वापस नहीं लौटेंगे।” लेकिन अनिल 2021 में कैंपस लौटा। लेकिन वह ‘निराश’ लग रहा था। वह अपने दोस्तों की तुलना में बहुत देर से पहुंचा। उन सभी को उसके ठिकाने के बारे में तब तक कोई सुराग नहीं था जब तक उसने उनमें से एक को नई दिल्ली के रेलवे स्टेशन से फोन नहीं किया । बूंदी और आईआईटी- दिल्ली दोनों जगहों पर अनिल के साथ रहे एक दोस्त का कहना है कि रेलवे स्टेशन से आया फोन शायद संकट का पहला संकेत था, “उसने मुझे बताया कि उसने पिछले 2-3 दिन रेलवे स्टेशन पर बिताए हैं, इस बात पर विचार करते हुए कि वापस लौटना है या नहीं।हीं मैंनेमैंनेउससे चिंता न करने को कहा। मुझे पता था कि वह अपनी क्लास में फेल हो गया था
और उसके परिवार की आर्थिक हालत ठीक नहीं थी। लेकिन वह इस बारे में बात नहीं करना चाहता था।” लेनी पड़ीं और कैंपस में अपने बैचमेट्स को कम से कम देखा, “अपने बैकलॉग के कारण वह अकादमिक रूप से हमसे कट गया। हमारी कक्षाएं पूरी तरह से अलग हो गईं। मुझे नहीं पता कि क्या उसने कभी अपने जूनियर्स से दोस्ती की थी।”
पीयूष और गोविंद दोनों का कहना है कि लौटने के बाद से अनिल उदास लग रहा था। उसकी सोशल मीडिया एक्टिविटी भी काफी कम हो गई थी। पीयूष कहते हैं, “अनिल और मैं बाल कटवाने गए थे। मैंनेमैंनेउसके पिता की मृत्यु के बारे में करने की कोशिश की, लेकिन वह कुछ भी शेयर करने से झिझक रहा था।”
बूंदी और आईआईटी- दिल्ली दोनों जगहों पर अनिल के साथ रहे दोस्त का कहना है, “वह मदद के लिए किसी के पास नहीं पहुंचा। मैं खुद शैक्षणिक और वित्तीय दबावों से जूझ रहा था, इसलिए मैंनेमैंनेनहीं सोचा था कि उसकी समस्याएं अलग होंगी हों । जब भी संभव होता मैं उससे मोटिवेट करने वाली बातें ही किया करता था।”
दोस्तों और परिचितों का कहना है कि अनिल आमतौर पर हॉस्टल मेस में खा ने की मेज पर एक ही जगह पर बैठा हुआ पाया जाता था – किनारे पर और लगभग हमेशा अकेला। एक पूर्व हॉस्टलर का कहना है, “उसके साथ बा तचीत लगभग हमेशा एकतरफा होती थी।”
आईआईटी दिल्ली के उसके एक दोस्त का कहना है, “IIT दिल्ली के कई दक्षिणा छात्रों का कहना है कि उनके लिए परिसर में अकेलापन महसूस करना असामान्य है। आईआईटी में अधिकांश लोग अकेलापन महसूस करते हैं क्योंकिक्यों उनके पास कोई हेल्प ग्रुप नहीं है। लेकिन जेएनवी और दक्षिणा के एक छात्र जेईई के लिए कोचिंग में वर्षों बिताने के बाद हमेशा जाने-माने चेहरों से घिरे रहते हैं। भले ही कोई पहले वर्ष में कॉन्फिडेंट न हो लेकिन चौ थे वर्ष तक हममें आत्मविश्वास विकसित हो जाता है। इसलिए अनिल की आत्महत्या अप्रत्याशित थी। हमने उसकी मदद की होती तो ऐसा नहीं होता। लेकिन उसने कभी भी अपनी परेशानियों का ज़रा भी संकेत नहीं दिया।”
उनके दोस्तों ने कहा कि अनिल पिछले महीने 2019 बैच के दीक्षांत समारोह के दौरान ‘बिल्कुल ठीक’ लग रहे थे। दरअसल, अनिल ने मौत से कुछ दिन पहले नए फोन की सिफारिश के लिए अपने बचपन के दोस्त से संपर्क किया था।
सौजन्य : Jansatta
नोट : समाचार मूलरूप से jansatta.com में प्रकाशित हुआ है ! मानवाधिकारों के प्रति सवेदनशीलता व जागरूकता के उद्देश्य से प्रकाशित !