अंबेडकर ने बौद्ध धर्म ही क्यों अपनाया, वह मुसलमान क्यों नहीं बने?

बाबा साहेब ने कहा था कि हिंदूओं को ये समझना बहुत जरूरी है कि वो भारत के बीमार लोग हैं और ये भी कि उनकी बीमारी दूसरे भारतीयों के स्वास्थ्य और प्रसन्नता के लिए घातक है. अंबेडकर जन्म से हिंदू तो थे लेकिन समाज में उनके साथ हुए जातिगत उत्पीडन और छुआछूत जैसी बुराइयों के चलते हिन्दू समाज को लेकर उनके अन्दर इतनी कुंठा भर चुकी थी कि वो मरना हिंदू के रूप में नहीं चाहते थे. जिसके चलते उन्होंने धर्म परिवर्तन का फैसला भी लिया. इसके लिए उन्होंने कई धर्मों को अपनाने पर विचार किया था. इस्लाम भी उनमें से एक था.
धर्म परिवर्तन से पहले उन्होंने इस्लाम के बारे में भी गहरा अध्ययन किया था. वो जातिवाद और दलितों की स्थिति के मामले में इस्लाम को हिंदू धर्म से बहुत अलग नहीं मानते थे.
इलाहाबाद के गोविंद बल्लभ पंत सामाजिक विज्ञान संस्थान के प्रोफेसर और आधुनिक इतिहास के जानकार बद्री नारायण के अनुसार भीमराव अंबेडकर इस्लाम धर्म की कई कुरीतियों के खिलाफ थे.
‘इस्लाम में भी ऊंची जातियों का बोल-बाला’: अंबेडकर
अंबेडकर का मानना था कि कि इस्लाम में भी हिंदू धर्म की तरह ऊंची जातियों का ही बोलाबाला है और यहां भी दलितो और पिछड़ों के साथ वही होता है जो हिन्दू समाज में होता आ रहा है. बीबीसी से बात करते हुए ब्रदी नारायण ने बताया, “भीमराव अंबेडकर मानते थे कि दलितों की जो दशा है उसके लिए दास प्रथा काफी हद तक जिम्मेदार है. इस्लाम में दास प्रथा को खत्म करने के कोई खास प्रतिबद्धता नहीं दिखती है.”
दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर शम्सुल इस्लाम भी इस बात से इत्तेफाक रखते हैं. वो बताते हैं, “अंबेडकर ने धर्म परिवर्तन के लिए इस्लाम पर भी विचार किया था, पर इसे अपनाया नहीं. क्योंकि वे मानते थे कि इसमें भी उतना ही जातिवाद है जितना हिंदू धर्म में.” वो बताते हैं कि अंबेडकर मानते थे कि मुसलमानों में भी जो हैसियत वाला वर्ग है वो हिंदू धर्म के ब्राह्मणों की तरह ही सोचता है.
हिंदू धर्म में ब्राह्मणवादी राजनीति का बोलबाला
Ambedkar and Islam Hindi – अंबेडकर ने स्पष्ट रूप से कहा था कि देश का भाग्य तभी बदलेगा तभी तरक्की की ओर बढ़ेगा जब हिंदू और इस्लाम धर्म के दलित ऊंची जाति की राजनीति से मुक्त हो पाएंगे. मीडिया चैनल से बात करते हुए इतिहासकार शम्सुल बताते हैं कि “अंबेडकर का कहना था कि इस्लाम धर्म के नाम पर जो राजनीति हो रही थी वो हिंदू धर्म के उच्च वर्गों की तरह की ही थी.” जैसे हिंदू धर्म में ब्राह्मणवादी राजनीति का बोलबाला था, वैसे ही इस्लाम की राजनीति भी ऊंची जातियों तक सीमित थी. अंबेडकर इस्लाम में महिलाओं की स्थिति को लेकर चिंतित थे. वो बहु विवाह प्रथा के खिलाफ थे.
ब्रदी नारायण बताते हैं, “अंबेडकर बहू विवाह प्रथा को महिला मुद्दों के साथ जोड़कर देखते थे. वो मानते थे कि इससे स्त्रियों को कष्ट होता है. इस प्रथा में उनका शोषण और दमन होता है.
” मनुस्मृति और इस्लाम
इतिहासकारों ने बताया कि अंबेडकर के इस्लाम न अपनाने के पीछे कई वजहों में से एक वजह ये भी रही है कि वो दलितों के इस्लाम अपनाने के पक्ष में नहीं थे. आजादी के बाद पाकिस्तान में बड़े पैमाने पर दलितों का धर्म परिवर्तन हो रहा था. अंबेडकर उन्हें इस्लाम धर्म न अपनाने की सलाह दे रहे थे. क्योंकि उनका मानना था कि वहां भी उनको बराबरी का हक़ नहीं मिल पाएगा.
इतिहासकार बताते हैं कि अंबेडकर को लगता था कि इस्लाम में कुरीतियों को दूर करने की आत्मशक्ति नहीं दिख रही थी और उसे दूर किए बिना समानता का भाव नहीं मिल पाता. वो ये भी बताते हैं कि मुगल शासकों ने मनुस्मृति को पूरी तरह अपनाया था जबकि अंबेडकर मनुस्मृति के खिलाफ थे.
मुस्लिम शासकों ने अपनाई ब्राह्मणवादी राजनीति
Ambedkar and Islam Hindi – जितने भी मुस्लिम शासक भारत आए उन में से ज्यादातर शासकों ने ब्राह्मणवादी राजनीति को अपनाया. और अगर हम मुगलकाल को भी देखें तो मुस्लिम शासकों ने हिंदू धर्म की ऊंची जातियों के साथ समझौता कर लिया था. और इसके पीछे की खास वजह थी ब्राहमण समाज का पढ़ा लिखा होना. क्योंकि पहली दलितों की शिक्षा और अधिकारों को लेकर कोई जोर नहीं दिया जाता था.
इतिहासकार यह मानते हैं कि अंबेडकर दलितों को समाज में समानता का अधिकार दिलाना चाहते थे, जो इस्लाम में संभव नहीं दिख रहा था. और शायद यही कारण रहा है कि आंबेडकर ने धर्म परिवर्तन के वक्त बौद्ध धर्म चुना न कि इस्लाम या कोई अन्य धर्म.
सौजन्य : Nedrick news
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