धर्म बदलने के बाद भी क्या दलित रहेगा दलित
केंद्र ने पूर्व प्रधान न्यायाधीश के जी बालकृष्णन की अध्यक्षता में एक आयोग गठित किया है जो उन लोगों को अनुसूचित जाति का दर्जा देने के मामले का गहन विश्लेषण करेगा, जिनका ‘ऐतिहासिक रूप से’ अनुसूचित जाति से संबंध है, लेकिन जिन्होंने राष्ट्रपति के आदेशों में उल्लिखित धर्मों के अलावा किसी अन्य धर्म को अपना लिया है।
संविधान (अनुसूचित जाति) आदेश, 1950 (समय-समय पर संशोधित) कहता है कि हिंदू या सिख धर्म या बौद्ध धर्म के अलावा किसी अन्य धर्म को मानने वाले व्यक्ति को अनुसूचित जाति का सदस्य नहीं माना जा सकता है। सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय द्वारा बृहस्पतिवार को जारी गजट अधिसूचना के अनुसार, तीन सदस्यीय आयोग में सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी डॉ. र¨वदर कुमार जैन और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) की सदस्य प्रोफेसर सुषमा यादव भी शामिल हैं।
आयोग नए व्यक्तियों को अनुसूचित जाति का दर्जा देने के मामले की जांच करेगा, जो ऐतिहासिक रूप से अनुसूचित जाति के होने का दावा करते हैं, लेकिन संविधान के अनुच्छेद 341 के तहत समय-समय पर जारी राष्ट्रपति के आदेशों में उल्लिखित धर्मों के अलावा अन्य धर्म को अपना चुके हैं। मौजूदा अनुसूचित जातियों पर निर्णय -अगर अमल में आता है तो- के निहिताथरें की भी आयोग जांच करेगा।
इसके अलावा, इन लोगों के अन्य धर्मों में परिवर्तित होने के बाद, रीति-रिवाजों, परंपराओं और सामाजिक भेदभाव और अभाव की स्थिति में बदलाव पर भी ध्यान दिया जाएगा। अधिसूचना में कहा गया है कि आयोग का मुख्यालय दिल्ली में होगा और अध्यक्ष के पदभार ग्रहण करने की तारीख से दो साल के अंदर वह अपनी रिपोर्ट सौंप देगा।
आयोग किसी भी अन्य संबंधित प्रश्नों पर भी मंथन कर सकता है जो वह केंद्र के परामर्श और उसकी सहमति से उचित समझे। के जी बालकृष्णन उच्चतम न्यायालय के पहले दलित प्रधान न्यायाधीश थे। वह भारत के राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष भी रह चुके हैं।
अधिसूचना के अनुसार, ‘इसके महत्व, संवेदनशीलता और संभावित प्रभाव को देखते हुए, इस संबंध में परिभाषा में कोई भी बदलाव विस्तृत और निश्चित अध्ययन और सभी हितधारकों के साथ व्यापक परामर्श के आधार पर होना चाहिए और जांच आयोग अधिनियम, 1952 (1952 का 60) के तहत किसी आयोग ने अब तक इस मामले की जांच नहीं की है।’
सौजन्य : Samaylive
नोट : यह समाचार मूलरूप से samaylive.com में प्रकाशित हुआ है. मानवाधिकारों के प्रति संवेदनशीलता व जागरूकता के उद्देश्य से प्रकाशित किया गया है !