हार्मोन थेरेपी से लेकर ब्रेस्ट सर्जरी तक के सभी दुखों को अकेले झेला, अब ‘ट्रांस-मैन’ ही मेरी पहचान
मेरा जन्म एक लड़की के शरीर में हुआ, पर मन से मैं लड़का थी। इस बात का एहसास मुझे जब मैं पांचवी क्लास में था, तभी से हो गया था। जैसे-जैसे मुझे मेरी पहचान समझ आई, वैसे-वैसे अपनों की तरफ से अत्याचार बढ़ता गया।
पहचान की असमंजस में फंसा रहा
त्रिपुरा के अगरतला में जन्मे पॉपी देवनाथ वुमन भास्कर से खास बातचीत में कहते हैं, ‘मैं खुद मेरी पहचान के लिए तड़प रहा था ऊपर से पापा-भाई की तरफ से मेरे कोमल शरीर पर भारी हाथों का पड़ना, मुझे अधमरा कर देता था।
जब परिवार को मेरी पहचान समझ आई तो आए दिन मेरे साथ मारपीट होती। मैं रोता-बिलखकता और तड़प कर रह जाता। पर क्या करता। कुछ समझ नहीं आ रहा था। मैं पांच साल का था जब मैंने लड़कों की ड्रेस पहननी शुरू कर दी थी।
लड़कों के कपड़े पसंद थे
लड़कों के कपड़े इतने पसंद थे कि जब स्कूल जाता तो स्कर्ट के नीचे भाई का अंडरवियर पहनता। मैंने बचपन में ही तय कर लिया था कि डिफेंस में जाऊंगा, लेकिन मेरी हाइट कम थी, इसलिए वहां नहीं जा पाया।
मैं लड़की था और लड़कियों के प्रति ही मेरा अट्रेक्शन होता। मैं बड़ी असमंजस में रहता कि मैं लड़की होकर किसी लड़की को कैसे पसंद कर सकता हूं। भगवान मुझे पाप देंगे। एक किशोर का मन इतना ही सोच सकता था।
पीरियड्स से परेशान था
हर महीने होने वाले पीरियड्स से उकता जाता। लड़कियों की तरह सजना-संवरना नहीं बल्कि लड़कों की तरह दाढ़ी-मूछ रखने का मन करता। उनकी तरह तैयार होने का मन करता, लेकिन जब ये सबकुछ कर नहीं पाता और भीतर ही भीतर घुटता रहता तो कुछ समय बाद डिप्रेशन का शिकार हो गया।
त्रिपुरा में 9वीं क्लास के बाद स्कूल में लड़कियां साड़ी पहनकर जातीं, लेकिन मुझे तो साड़ी बिल्कुल पसंद नहीं थी। बहुत उलझन होती। मन में आता कि मैं कब आजाद होउंगा। कब खुद को पहचान पाऊंगा। चार से पांच बार मरने की भी कोशिश की। पर मैं मरना नहीं चाहता था। मुझे जिंदा रहना था।
BSc किया और कंप्यूटर कोर्स भी
किसी लड़की से प्यार भी होता तो उसे बयां नहीं कर पाता। खुद में घुटन बढ़ने लगी। तब लगा कि बस अब इससे ज्यादा नहीं सह सकता और मैंने आर्मी वालों की तरह बाल छोटे करवा लिए। पैंट-शर्ट पहनने लगा।
जैसे-तैसे बीएससी किया। बहुत से कंप्युटर कोर्स किए। मेरी मां के गुजरने के बाद मैंने मां का रोल निभाया और जब मुझे मेरे परिवार की जरूरत पड़ी तब उन्होंने मेरा अस्तित्व ही नकार दिया।
टीवी प्रोग्राम से मिली राह
27 साल की उम्र तक मैं अपनी पहचना को समझ नहीं पाया था। फिर एक दिन टीवी पर एक प्रोग्राम देखा और तब लगा कि हां, यही तो मैं हूं। मैं ट्रांसमैन हूं। खुद को समझने के बाद मैंने घर से निकलने की ठानी।
त्रिपुरा से निकल सीधे केरल पहुंच गया। एक कंपनी में काम किया, क्योंकि अब तक मैं लड़की के ही भेष में था तो कंपनी के सिक्योरिटी गार्ड ने मेरे साथ हाथापाई की। मेरे चाल-चलन को लेकर सवाल किए गए। भेदभाव हुआ।
अब कंपनी में शुरू किया काम
उस कंपनी में छह महीने ही काम कर पाया और बैंग्लोर में दूसरी कंपनी में काम करने लगा। दूसरी नौकरी में मेरा काम लड़कियों के अंडरगार्मेंट्स बेचना था। मैंने किसी तरह तीन साल उस कंपनी में काम किया।
2017-18 वो वक्त आया जब मैंने सोचा कि अब परदे के पीछ नहीं रहना है। मैंने कंपनी के सुपरवाइजर को अपनी आइडेंटिटी बताई। सच्चाई पता होने के बाद सुपरवाइजर का मेरे ऊपर अत्याचार और बढ़ गया।
लड़की से लड़का बन गया
मैंने हार्मोन थेरेपी ली। खुद को लड़की से लड़का बनाया। ब्रेस्ट सर्जरी कराई। ये वो मुश्किल वक्त था जब मेरी गर्लफ्रेंड ने भी मेरा साथ नहीं दिया। सर्जरी के बाद डॉक्टर ने हाथ उठाने को मना कर दिया था। स्किन बाहर न आए उसके लिए टाइट बलियान पहनकर रखनी पड़ती, लेकिन ये सारी मुसीबतें मैंने अकेले झेलीं। मेरी ऐसी हालत होती कि आज मरूं या कल। खैर… मुझे सबसे बड़ी राहत तब मिली जब मेरे पीरियड्स आने बंद हुए।
कोविड की वजह से लगे लॉकडाउन से पहले मैं दिल्ली आ गया। यहां आने के लिए मेरे पास पैसा नहीं था तो मैंने मां की दी हुई आखिरी निशानी सोने की चेन बेच दी। दिल्ली में काम करना शुरू ही किया था कि तभी सोशल मीडिया पर मुझे विद्या राजपूत का बायोडेटा मिला।
मिला जीवनसाथी
विद्या राजपूत छत्तीसगढ़ में ट्रांसजेंडर्स के हकों के लिए काम करती हैं। विद्या राजपूत एक पुरुष योनी में पैदा हुईं और उनकी भी नाक की सर्जरी होनी थी। मैंने खुद सर्जरी का दुख झेला था, इसलिए विद्या जी का साथ देने मैं छत्तीसगढ़ आ गया।
तबसे छत्तीसगढ़ मितवा संकल्प समिति के साथ काम कर रहा हूं। यह हमारी अपनी ही संस्था है। इस संस्था के जरिए ट्रांसजेंडर्स को उनके हकों के बारे में बता रहे हैं।
माता-पिता बच्चों को स्वीकारें
अब मेरा सभी माता-पिता से विनम्र निवेदन है कि उनका बच्चा जिस भी जेंडर का हो लेकिन उन्हें उसे स्वीकार करना चाहिए। फिर चाहें वो ट्रांसजेंडर हो या एलजीबीटी में से किसी भी कम्युनिटी से।
सौजन्य : Dainik bhaskar
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