लड़की से लड़का बना, विरोध से तंग आकर छोड़ी स्केटिंग तो पहली वुमन एथलीट ने झेले कमेंट्स
हाल ही में स्विमिंग की वर्ल्ड गवर्निंग बॉडी फीना ने महिला कैटेगरी में शामिल होने वाली तैराकों को लेकर सख्त नियम बनाए हैं। इससे ट्रांसजेंडर तैराक महिला इंटरनेशनल एलीट कॉम्पिटिशन में हिस्सा नहीं ले सकेंगे। फीना ने एक ‘ओपन’ कैटेगरी बनाने का फैसला लिया है, जिसमें सभी तरह के तैराक हिस्सा ले सकेंगे। इससे पहले भी ट्रांसजेंडर खिलाड़ियों को लेकर विवाद रहा है। प्राइड मंथ में पढ़िए, क्या घर-परिवार और समाज से हिकारत झेलने वाले ट्रांसजेंडरों के साथ खेल के मैदान में भी भेदभाव होता है.
भारत के पहले ट्रांसमैन बॉडी बिल्डर आर्यन पाशा का कहना है कि ये बड़ा मुद्दा है। ट्रांसजेंडर के लिए स्पोर्ट्स में अलग से कैटेगरी नहीं है। इस कारण ट्रांसवुमन को महिलाओं और ट्रांसमैन को पुरुषों के साथ पार्टिसिपेट करना होता है। ट्रांसवुमन शारीरिक तौर पर आम महिलाओं से स्ट्रांग होती है, जबकि ट्रांस मैन आम पुरुषों की तुलना में शारीरिक रूप कमजोर होते हैं, क्योंकि ट्रांजिशन से पहले की उनकी जो बॉडी थी, उसका असर तो ताउम्र रहता ही है। इसके चलते अक्सर ट्रांसजेंडर का गेम्स में पार्टिसिपेट करना विवाद का मुद्दा बन जाता है।
ट्रांसमैन : जो लड़की के शरीर में पैदा हो, लेकिन हाव भाव और आदतें लड़कों वाली हो। बाद में सर्जरी करवाकर शारीरिक तौर भी लड़का बन जाए।
ट्रांसवुमन: लड़के के रूप में जन्म लिया हो, लेकिन हावभाव और आदतें लड़कियों जैसी हों। बाद में ट्रांजिशन कराकर लड़की बन जाए।
विरोध के चलते छोड़नी पड़ी स्केटिंग
ट्रांसमैन बॉडी बिल्डर आर्यन पाशा कहते हैं, ‘मैं 18 साल की उम्र में सर्जरी करवाकर लड़की से लड़का बन गया। उससे पहले यानी कि जब मैं स्कूल में था, तब स्केटिंग करता था। उस वक्त मैं फीमेल कैटेगरी से पार्टिसिपेट करता था। नेशनल लेवल तक स्केटिंग की। मेरे बारे में कोच को सब पता था, इसलिए उन्होंने हमेशा सपोर्ट किया। बाकी लोग तो सिर्फ भद्दे-भद्दे कमेंट्स करते थे। स्टेडियम में बैठकर चिल्लाते थे कि कहां लड़कियों के बीच में किन्नर को खेलने दे रहे हो। विरोध से तंग आकर पार्टिसिपेट करना ही छोड़ दिया।’
क्यों जरूरी हैं अलग से कैटेगरी?
आर्यन ट्रांसमैन बनने के बाद मसल मेनिया चैम्पियनशिप समेत कई कॉम्पटीशन में मेडल जीत चुके हैं। वह मेल कैटेगरी में ही हिस्सा लेते हैं। उन्होंने कई फेडरेशन से ट्रांसजेंडर कैटेगरी शामिल करने की गुहार लगाई, लेकिन किसी ने सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं दी। हर बार कह दिया जाता है कि स्पोर्ट्स में एक-दो ट्रांसजेंडर ही हैं, जब ज्यादा होंगे, तब इस पर काम किया जाएगा।
आर्यन के मुताबिक, ट्रांसमैन भले ही पुरुष कैटेगरी में हिस्सा लेते हैं, लेकिन उनकी बॉडी पुरुषों जैसी नहीं है। जो पैदाइशी पुरुष हैं, उनकी बॉडी में टेस्टोस्टेरोन नैचुरली बनते हैं, लेकिन ट्रांस मैन की बॉडी में ऑपरेशन के बाद यह बनते हैं। हालांकि, 16 साल की उम्र से जिम करना शुरू कर दिया था, इसलिए उनके मसल्स स्ट्रांग हैं। बाकी सभी के साथ ऐसा नहीं होता है। कई ट्रांसमैन सर्जरी के बाद स्पोर्ट्स में आते हैं तो खास परेशानी होती है, क्योंकि ट्रांसमैन का बोन स्ट्रक्चर और मसल्स बाकी पुरुषों की तरह नहीं होते। इसलिए जरूरी है कि दुनिया भर में ट्रांसजेंडर्स के लिए अलग से कैटेगरी बनाई जानी चाहिए।
स्पोर्ट्स में ट्रांसजेंडर कम क्यों हैं?
आर्यन पाशा कहते हैं, ‘फेडरेशन के नियम और समाज डर ट्रांसजेंडर्स के स्पोर्ट्स में पार्टिसिपेट करने के आड़े आते हैं। फेडरेशन से अनुमति मिल जाती है तो ट्रांसजेंडर गेम्स में पार्टिसिपेट कर लेते हैं। अगर चयन नहीं होता है तो नहीं खेल पाते हैं। फीना ने पहले ट्रांसवुमन को महिलाओं की कैटेगरी में पार्टिसिपेट करने की इजाजत दे दी थी, लेकिन लगातार हो रहे विरोध के बाद अब रोक लगा दी। साइकिल की गवर्निंग बॉडी इंटरनेशनल साइकिल यूनियन (UCI) ने भी यही किया। पहले खेलने की अनुमति दे दी और फिर बाद में नियम कड़े कर दिए।’
इसके अलावा, दूसरी वजह समाज है। ट्रांसमैन और ट्रांसवुमन जब तक खुद ठीक से समझ पाते हैं और सर्जरी करवाकर जेंडर चेंज करते हैं, तब उनकी उम्र 25 से 35 साल हो चुकी होती है। ऐसे में लोग क्या कहेंगे, कहीं नौकरी न चली जाए, यह सोचकर जो लोग जेंडर बदल भी लेते हैं, वे खुलकर पार्टिसिपेट नहीं कर पाते हैं। अभी हमारे देश में स्पोर्ट्स में तीन ट्रांसमैंन और एक ट्रांसवुमन है। हालांकि, ट्रांसवुमन ने खेल से बाहर किए जाने के डर से अपनी पहचान उजागर नहीं की है।
फीना ने रोक लगाते हुए क्या कहा?
फीना ने नियम सख्त करके महिला कैटेगरी में ट्रांसजेंडर तैराक के हिस्सा लेने पर रोक लगा दी हैं। बयान में कहा गया कि फीना हमेशा हर एथलीट का स्वागत करेगी। एक ओपन कैटेगरी का मतलब है कि हर किसी के पास एलीट स्तर पर भाग लेने का मौका होगा। ऐसा पहले नहीं हुआ है, इसलिए फीना को लीड करने की जरूरत है। हम चाहते हैं कि सभी एथलीट ऐसा ही महसूस करें।
सिर्फ बड़े टूर्नामेंट और ट्रांसवुमन के लिए है नया नियम
फीना का नया नियम सिर्फ वर्ल्ड चैंपियनशिप जैसी प्रतियोगिताओं के लिए है, जो खुद फीना आयोजित करवाता है। जहां तैराकों की पात्रता का पैमाना फीना तय करता है। इससे ओलिंपिक में ट्रांसजेंडर खिलाड़ियों की भागीदारी और महिला कैटेगरी में विश्व रिकॉर्ड का पैमाना भी प्रभावित होगा। नया नियम सिर्फ महिला कैटेगरी में भाग लेने वाली ट्रांसजेंडर तैराकों के लिए है, पुरुष कैटेगरी के लिए नहीं। हालांकि, राष्ट्रीय स्तर या स्थानीय स्तर पर फीना के नए नियम का पालन जरूरी नहीं होगा। राष्ट्रीय फेडरेशन अपने टूर्नामेंट में अपना खुद का पैमाना तय कर सकते हैं। तैराकी के बाद रग्बी के अधिकारियों ने भी ट्रांसजेंडर खिलाड़ियों पर इसी तरह की पाबंदी लगा दी है।
पहली चैंपियन तैराक ट्रांसजेंडर नहीं ले पाएंगी हिस्सा
फीना के इस फैसले के बाद अमेरिका की लिया थॉमस जैसी तैराक वर्ल्ड चैंपियनशिप जैसे बड़े इवेंट्स में हिस्सा नहीं ले सकेंगी। थॉमस इसी साल महिला तैराकी में चैंपियन बनने वाली पहली ट्रांसजेंडर बनी थीं। थॉमस शुरुआत में तीन साल तक पुरुषों की कैटेगरी में हिस्सा ले रही थीं। उन्होंने इसी कैटेगरी में अपनी तैयारी की थी।
टोक्यो ओलिंपिक के दौरान हुआ था विवाद
साल 2021 के टोक्यो ओलिंपिक में न्यूजीलैंड की ट्रांसजेंडर वेटलिफ्टर लॉरेल हबर्ड ने हिस्सा लिया था। टोक्यो में भाग लेने वाली हबर्ड पहली ट्रांसजेंडर वुमन एथलीट बनीं। उन्होंने महिला कैटेगरी में हिस्सा लिया था। इस पर महिला खिलाड़ियों ने नाराजगी जताई थी। महिला खिलाड़ियों ने कहा कि यह गलत फैसला है। ट्रांसजेंडर को ओलिंपिक में हिस्सा लेने देना महिलाओं के लिए अन्यायपूर्ण हैं। यह एक भद्दा मजाक है।
इंग्लैंड में ट्रांसजेंडर साइकिलिस्ट एमिली ब्रिजेस को राष्ट्रीय ओम्नियम चैंपियनशिप में भाग लेने नहीं दिया गया। वर्ल्ड साइकिलिंग गवर्निंग बॉडी यूनियन साइकिलिस्ट इंटरनेशनल ने उन्हें अपात्र घोषित कर दिया था।
इंटरनेशनल ओलिंपिक कमेटी ने बदले नियम
साल 2003 में इंटरनेशनल ओलिंपिक कमेटी ने ट्रांसजेंडर एथलीट्स को में खेलने की अनुमति दे दी। 2015 की गाइडलाइन के अनुसार, ट्रांसजेंडर महिला को अपना जेंडर बताने की जरूरत नहीं, लेकिन टेस्टोस्टेरोन का लेवल साल भर तक 10 नैनोमोल्स प्रति लीटर से कम होना जरूरी था। साल 2021 में फिर नया फ्रेमवर्क लाया गया, जिसके तहत ट्रांसजेंडर एथलीट्स को ओलिंपिक में एंट्री दी गई। यह बदलाव लैंगिक समानता हासिल करने के उद्देश्य किया गया।
सौजन्य : Dainik bhaskar
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