दंगों का दर्दः सबका मिलता है प्यार, मोहल्ला छोड़ने का नहीं है सवाल

दंगों के दौरान पुजारी समेत हनुमान मंदिर की रक्षा के लिए उठ खड़े हुए थे तीन गलियों के मुस्लिम परिवार पिछले साल फरवरी में उत्तर-पूर्वी दिल्ली हिंसा की आग में पूरा जिला झुलस रहा था, लेकिन यहां एक जगह ऐसी भी थी, जिसने हमारी गंगा-जमुनी तहजीब को कायम रखा। यहां घनी मुस्लिम आबादी वाले मौजपुर के बजरंगी मोहल्ले के बीचो-बीच एक प्राचीन हनुमान मंदिर मौजूद है। हिंसा हुई तो उपद्रवियों की नजर मंदिर पर गई, लेकिन यहां पूरा मोहल्ला मंदिर के लिए ढाल बनकर खड़ा हो गया।
मंदिर के पुजारी पंडित विश्वनाथ पांडेय बताते हैं कि इतना सब कुछ होने के बाद भी वह पूरी तरह बेफिक्र रहे। हालांकि उनके मन में भय जरूर था, लेकिन मोहल्ले वाले उनको साहस देते और कहीं न जाने के लिए कहते थे। रात-रात भर जागकर मुस्लिम लोगों ने मंदिर के बाहर बैठकर उसकी हिफाजत की। आज भी पंडित जी के सुखदुख में पूरा मोहल्ला खड़ा रहता है। यहां तक कि होली-दीपावली और बाकी दूसरे त्योहार भी साथ मिलकर मनाए जाते हैं। मोहल्ले वालों का प्यार देखकर पंडित विश्वनाथ पांडेय भी मंदिर और इलाका छोड़कर नहीं जाना चाहते हैं।
मंदिर के पुजारी विश्वनाथ पांडेय बताते हैं कि बजरंगी मोहल्ले का हनुमान मंदिर करीब 70 साल पुराना है। पहले यहां हिन्दू परिवार रहते थे, लेकिन 1992 में जब देशभर का माहौल खराब हुआ तो हिन्दू परिवारों ने अपने मकान बेच दिए और पूरे मोहल्ले में मुस्लिम बस गए। आज यहां पूरे मोहल्ले में एक भी हिन्दू परिवार नहीं है। नजदीकी अखाड़े वाली गली, विजय मोहल्ला और अंबेडकर बस्ती से श्रद्धालु पूजा-पाठ के लिए आते हैं।
पिछले साल जब हिंसा हुई तो पूरे मोहल्ले के लोग उनके पास पहुंचे। लोगों का कहना था कि पंडित जी आपको बिल्कुल भी डरने की जरूरत नहीं हैं। यहां कोई आपका बाल भी बांका नहीं कर पाएगा। मोहल्ले वालों के आश्वासन पंडित विश्वनाथ का हौसला बढ़ा। विश्वनाथ बताते हैं कि हिंसा के दौरान मंदिर में पूजा-पाठ नहीं रुका। दिनभर मोहल्ले के लोग मंदिर के बाहर बैठे रहते। विश्वनाथ ने बताया कि एहतियात के तौर पर शुरूआत के कुछ दिन वह रात के समय अपने रिश्तेदार के घर चले जाते थे, लेकिन चंद दिनों बाद उन्होंने दोबारा मंदिर में ही रहना शुरू कर दिया।
मंदिर के हर काम में हिस्सा लेते हैं नदीम
विश्वनाथ बताते हैं पहले उनके चाचा माता प्रसाद पांडेय मंदिर में पूजा पाठ किया करते थे। वह एमटीएनएल में नौकरी करते थे। स्थानीय निगम पार्षद रेशमा नदीम के ससुर इकबाल अहमद उनके सहकर्मी थे। दोनों में गहरी दोस्ती थी। आज निगम पार्षद रेशमा का पति नदीम अहमद उस दोस्ती को निभा रहा है। नदीम बताते हैं कि वह मंदिर के हर कार्य में हिस्सा लेते हैं। हिंसा के समय सरवर खान, इरशाद इदरीसी, चौधरी कयामुद्दीन, सगीर अंसारी समेत दर्जनों लोगों ने मंदिर की हिफाजत की। चाचा माता प्रसाद पांडेय के रिटायर होने के बाद सन 2000 में मंदिर की जिम्मेदारी विश्वनाथ को मिल गई। अब विश्वनाथ अपनी पत्नी संतोष पांडेय और दो बेटियों के साथ मंदिर में रह रहे हैं।
साभार : अमर उजाला