विलुप्त हो रही इस आदिम भाषा को संरक्षित करने के लिये हीरामन ने बनाया है शब्दकोश

नयी दिल्ली, 27 दिसंबर। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आकाशवाणी से प्रसारित होने वाले अपने मासिक संबोधन ‘मन की बात’ कार्यक्रम में झारखंड की आदिम जनजाति कोरवा भाषा के संरक्षण की कोशिश की सराहना की। उन्होंने इसके लिये झारखंड के गढ़वा में रहने वाले हीरामन कोरवा के एक दशक से अधिक समय से किये जा रहे प्रयास की प्रशंसा की। हीरामन कोरवा ने कोरवा भाषा शब्दकोश को लिपिबद्ध किया है। जिससे एक विलुप्त होती भाषा को भविष्य में भी संरक्षित रखा जा सके।.
प्रधानमंत्री ने कहा कि कोरवा जनजाति की आबादी केवल 6000 है, जो शहरों से दूर पहाड़ियों और जंगलों में रहती है। हीरामन जी ने अपने समुदाय की संस्कृति और पहचान को संरक्षित करने का काम किया है। 12 साल के अथक प्रयास के बाद उन्होंने कोरवा भाषा का एक शब्दकोष बनाया है, जो विलुप्त हो रही भाषा को संरक्षित करने के लिए सराहनीय है। हीरामनजी ने कोरवा समुदाय के लिये जो किया, वह देश के लिए एक उदाहरण है।
उल्लेखनीय है कि झारखंड के कई हिस्सों में कोरवा आदिम जनजाति की आबादी निवास करती है, लेकिन इनकी संख्या लगातार कम होती जा रही है। अपनी भाषा को संरक्षित करने के लिए गढ़वा के सुदूरवर्ती सिंजो गांव निवासी हीरामन कोरवा ने 12 साल के परिश्रम से कोरवा भाषा शब्दकोश को लिपिबद्ध किया है। जिससे एक विलुप्त होती भाषा को भविष्य में भी संरक्षित रखा जा सके। 50 पन्नों के इस शब्दकोष में पशु-पक्षियों से लेकर सब्जी, रंग, दिन, महीना, घर गृहस्थी से जुड़े शब्द, खाद्य पदार्थ, अनाज, पोशाक, फल सहित अन्य कोरवा भाषा के शब्द और उनके अर्थ शामिल किये गये हैं। हीरामन पेशे से हैं।
बचपन में हीरामन ने जब देखा कि समय के साथ समाज के लोग कोरवा भाषा को भूलने लगे हैं, तो उन्होंने कोरवा भाषाओं को एक डायरी में लिपिबद्ध करने का काम शुरू कर दिया था। आर्थिक तंगी के कारण 12 साल तक यह शब्दकोश डायरियों में पड़ा रहा। फिर आदिम जनजाति कल्याण केंद्र गढ़वा और पलामू के मल्टी आर्ट एसोसिएशन के सहयोग से कोरवा भाषा शब्दकोश छप सका।
साभार :दैनिक आज